Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण- सिद्धान्त-परम- लघु-मंजूषा
पंक्ति में कही गई है । भर्तृहरि ने व्याकरण को ही साधु शब्दों के स्वरूप ज्ञान का एक मात्र आधार माना है - तत्त्वावबोधः शब्दानां नास्ति व्याकरणाद ऋते ( वाप० १.१३ ) तथा शब्द - संस्कार को परमात्मा की साक्षात् सिद्धि रूप, प्रभ्युदय - विशेष का कारण माना है । द्र०
तस्माद् यः शब्द-संस्कारः सा सिद्धिः परमात्मनः । ( वाप०१.१३२ )
[ 'शक्ति' के तीन प्रकार ]
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शास्त्र-क
सा च शक्तिस् त्रिधा - 'रूढिः', 'योगः', 'योग- रूढिश्च' । -कल्पितावयवार्थ-भानाभावे समुदायार्थ-निरूपितशास्त्र - कल्पिता -
शक्तिः 'रूढिः । यथा - मणि- नूपुरादौ । वयवार्थ - निरूपिता शक्तिः 'योगः' । यथा- पाचकादौ । शास्त्र - कल्पितावयवार्थान्वित - विशेष्य-भूतार्थ-निरूपिता शक्तिः 'योगरूढ': । यथा-'पङ कज' - पदे । तत्र' 'पङ्कजनि-कर्तृ पद्मम्' इति बोधात् ।
और वह 'शक्ति' तीन प्रकार की होती है-रूढ़ि', 'योग' तथा 'योगरूढ़ि । (व्याकरण) शास्त्र के द्वारा कल्पित अवयवों (प्रकृति, प्रत्यय आदि) के ( पृथक्, पृथक् ) अर्थ का ज्ञान न होने पर भी ( प्रकृति-प्रत्यय के) समुदाय के अर्थ से बोधित शक्ति 'रूढ़ि ' है । जैसे- 'मणि', 'नूपुर' आदि ( शब्दों) में ।
(व्याकरण) शास्त्र के द्वारा कल्पित अवयवों ('प्रकृति', 'प्रत्यय' आदि) के आधार पर मानी गयी शक्ति 'योग' है । जैसे -- पाचक:' आदि (शब्दों) में ।
शास्त्र - कल्पित अवयवों ('प्रकृति', 'प्रत्यय' ) के अर्थ से सम्बद्ध ( किसी) प्रधान-भूत प्रर्थ से ज्ञात शक्ति 'योगरूढ़ि' है । जैसे - 'पंकज' (शब्द) में । क्योंकि यहां पङ्क में 'उत्पन्न होने वाला कमल' यह बोध होता है ।
१. ह० में 'तत्र' अनुपलब्ध ।
२.
ह०, बंमि० - 'बोधः ।
'रूढ़ि', 'योग' तथा शास्त्र द्वारा कल्पित अथवा यदि अवयवों के
रूढ़ि शक्ति - यहां 'अभिधा' शक्ति के तीन भेद बताये गये 'योगरूढ़' | प्रथम 'रूढ़ि' शक्ति वहां मानी गयी जहां व्याकरण 'प्रकृति', 'प्रत्यय' रूप अवयवों के अर्थ का ज्ञान न होता हो, अर्थ का ज्ञान होता भी हो तो उस अवयवार्थ से भिन्न, 'प्रकृति' पूरे पद का कोई अन्य अर्थ व्यवहार में आता हो। जैसे 'मणि', 'नूपुर' आदि शब्दों में 'रूढ़ि' शक्ति की सत्ता माननी होगी ।
'प्रत्यय' के समुदायभूत
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