Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
[ 'असाधु शब्दों में वाचकता शक्ति नहीं होती', नैयायिकों के इस मत का निराकरण ]
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१.
यत्तु ताकिका :- साधु - शब्देन साधु-शब्द- स्मरण - द्वारा अर्थ- बोध: - इत्याहुः, तन्न | साधु-स्मरणं बिनाऽपि बोधानुभवात् । तद्-वाचक - साधु - शब्दम् प्रजानतां बोधानापत्तेश्च । न च 'शक्तिभ्रमाद् बोधोऽसाधु-शब्देषु' इति वाच्यम् । निस्संदेह - प्रत्ययस्य बाधकं बिना भ्रमत्वायोगात् । अतएव स्त्री-शूद्र - बालादीनाम् उच्चारिते साधाव् ग्रर्थ-संशये तद्-अपभ्रं शेनार्थ - निर्णयः । अत एव समानायाम् श्रर्थावगतौ शब्दश्चापशब्दैश्च शास्त्रेण धर्मनियमः, इति भाष्यम्, वाचकत्वाविशेषेऽपि नियमः पुण्य-पापयोः इति हरि - कारिका' च संगच्छते ।
नैयायिक जो यह कहते हैं कि असाधु शब्दों (के प्रयोग) से ( साधु शब्दों का स्मरण होता है और उस ) साधु शब्दों के स्मरण के द्वारा (असाधु शब्द के ) अर्थ का बोध होता है वह उचित नहीं है क्योंकि साधु शब्दों की स्मृति हुए बिना भी ( असाधु शब्दों से सीधे ) अर्थ - बोध का अनुभव होता है। तथा ( इन नैयायिकों के मत के अनुसार ) उन ( असाधु शब्दों से बोध्य अर्थी) के वाचक साधु शब्दों को न जानने वालों (अशिक्षित-जनों) को उन उन अर्थों का ज्ञान नहीं होना चाहिये (परन्तु उन्हें भी अर्थ - बोध होता है)
२.
" साधु शब्दों में ( भी वाचकता) शक्ति है ऐसा भ्रम हो जाने के कारण ( उनसे ) अर्थ- बोध होता है" यह भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सन्देह-रहित ज्ञान को बाध ज्ञान के अभाव में भ्रम मानना ठीक नहीं है ।
१
इसीलिये ( असाधु - शब्दों के भी शक्तियुक्त होने के कारण) साधु-शब्दों के उच्चारण किये जाने से स्त्री, शूद्र तथा बालक आदि को उनके अर्थ के विषय में सन्देह होने पर, ( उन अर्थों के वाचक) असाधु शब्दों के द्वारा अर्थ का निर्णय कराया जाता है ।
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द्र० - वाप० (३.३.३० );
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तुलना करो - महा०, भाग १, पृ० ५८ एवम् इहापि समानायाम् अर्थावगतौ शब्देन चापशब्देन च धर्म-नियमः क्रियते एवं क्रियमाणम् अभ्युदय कारि भवति ।
असाधुर् अनुमानेन वाचकः कैश्चिद् इष्यते । वाचकत्वाविशेषे वा नियमः पुण्य-पापयोः ॥
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