Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
तादात्म्यम् । तदेव सम्बन्धः । उभय-निरूपित-तादात्म्यवान् उभय इत्यर्थ-पदयोर्व्यवहारात् । शक्ते रपि कार्यजनकत्वे सम्बन्धस्यैव नियामकत्वात् । दीपादि-गत-प्रकाशकत्वशक्तावपि पालोक-विषय-सम्बन्धे सत्येव वस्तु-प्रकाश
कत्वं नान्यथेति दृष्टत्वात् । इसलिये शब्द तथा अर्थ में (नेयायिकाभिमत ईश्वरेच्छा रूप) सम्बन्ध से भिन्न 'शक्ति' है, जिसका दूसरा नाम है - 'वाच्य-वाचक-भाव' । उस ('शक्ति') का द्योतक है (शब्द तथा अर्थ का पारस्परिक) अभेदज्ञान, जिसका मूल (कारण) है एक में दूसरे का (शब्द में अर्थ का तथा अर्थ में शब्द का) अध्यारोप। यह 'तादात्म्य' ही (दोनों में विद्यमान) सम्बन्ध हैं। पद तथा पदार्थ का जो 'तादात्म्य' (अभेद) उससे दोनों (पद तथा पदार्थ) ही युक्त हैं इस प्रकार का व्यवहार अर्थ तथा पद दोनों में पाया जाता है (इस तरह 'तादात्म्य' को सम्बन्ध माना जा सकता है)।
(यदि यह कहा जाय कि पद तथा पदार्थ में विद्यमान 'वाच्यवाचक रूप 'शक्ति' ही सम्बन्ध हैं तो वह उचित नहीं क्योंकि) 'शक्ति' की कार्योत्पादकता में भी ('शक्ति' से भिन्न) कोई सम्बन्ध ही नियामक होता है (जैसे) दीपादि में विद्यमान प्रकाशकता-'शक्ति' में भी, प्रकाश तथा (प्रकाश्यमान) विषय (वस्तु) का (परस्पर संयोग यादि कोई) सम्बन्ध होने पर ही, वस्तु को प्रकाशित करने की क्षमता होती है, अन्यथा (किसी सम्बन्ध के न होने पर) नहीं, ऐसा देखा गया है।
वैयाकरण ईश्वरेच्छा को 'शक्ति' न मानकर उससे भिन्न एक दूसरे प्रकार की 'शक्ति' मानते हैं। यहाँ के 'सम्बन्धान्तरम्' पद के लिये तुलना करो-सा च पदार्थान्तरम् इति केचित् (रसगङ्गाधर, द्वितीय प्रानन पृ० १२२) । तथा इसकी टीका में नागेश का कथन---'केचिद्'-वैयाकरण-मीमांसकाः । इस 'शक्ति' का ही दूसरा नाम है 'वाच्य-वाचक-भाव' ।
तद्ग्राहकं च .. . . . . अर्थपदयोर्व्यवहारात्---वस्तुतः शब्द का अर्थ में तथा अर्थ का शब्द में 'अध्यास' अथवा 'अध्यारोप' कर लिया जाता है। 'अध्यास' का अभिप्राय है --- 'एक में दूसरे के धर्म का आरोप या आभासन' | जैसे सीप में चाँदी का ज्ञान । द्रष्टव्य --'पारोपो नाम अन्यस्मिन् अन्यधर्मावभासः । यथा-शुक्तौ रजतम् (न्यायकोश) । इस पारस्परिक 'अध्यास' के कारण शब्द तथा उसके अर्थ में सर्वथा अभेद या 'तादात्म्य' की प्रतीति होती है । इसीलिये ‘घट' शब्द से निरूपित 'तादात्म्य' से घट रूप अर्थ युक्त है तथा 'घट' रूप अर्थ से निरूपित 'तादात्म्य' से 'घट' शब्द युक्त हैं-इस प्रकार का व्यवहार होता है। इस प्रकार का अभेद-ज्ञान ही 'शक्ति' या दूसरे शब्दों में वाच्य-वाचक-भाव का द्योतक है।
यहाँ मूल पंक्ति में 'तादात्म्य' को ही वाच्य-वाचक-सम्बन्ध कहा गया है-'तदेव सम्बन्धः' । या तो यहाँ 'सम्बन्धः' ...--पद का अर्थ 'सम्बन्ध-द्योतक' किया जाय या 'सम्बन्धः'
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