Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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शक्ति-निरूपण दोनों को वस्तुतः अभिन्न माना है । पद तथा पदार्थ का यह पारस्परिक 'अध्यारोप' ही 'संकेत' है।
स्मृत्यात्मक 'दर्शितम्-'स्मृत्यात्मकः' इस पद का विद्वानों ने दो प्रकार से विग्रह किया है । प्रथम है-स्मृतिः प्रात्मा (विषयो) यस्य सः, अथवा स्मृती प्रात्मा (स्वरूप) यस्य सः। इसका अभिप्राय यह है कि ज्ञात शब्द तथा अर्थ की स्मृति होने पर ही 'अध्यास' या दूसरे शब्दों में संकेत सम्भव है। इस पद का दूसरा विग्रह है-स्मृतौ (पाणिन्यादिशास्त्रेषु) प्रात्मा यस्य । इसके अनुसार अर्थ यह हुआ कि पाणिनि आदि आचार्यों के शास्त्रों में जिसका स्वरूप वर्णित या निर्णीत है वह 'सङ्केत' है । परन्तु इन दोनों में पहला विग्रह तथा अभिप्राय अधिक स्वाभाविक प्रतीत होता है क्योंकि उससे 'सङ्केत' में स्मृति की अनिवार्यता प्रतिपादित होती है ।
['ईश्वर-संकेत ही शक्ति है' नैयायिकों के इस मत का खण्डन]
उक्त ईश्वर-सङ्केत एव शक्तिरिति नैयायिक-मतं न युक्तम् । 'अयम् एतच्छक्यः' 'पत्रास्य शक्तिः' इत्यस्य सङ्केतस्य शक्तितः पार्थक्येन प्रसिद्धत्वात् । अत एव न्यायवाचस्पत्ये उक्तम्-सर्गादिभुवां महषिदेवतानाम् ईश्वरेण साक्षादेव कृतः सङ केतः । तद्व्यवहाराच्चा
स्मदादीनामपि सुग्रहस्तत् सङ्केतः। (उपरि) कथित 'ईश्वर संकेत ही शक्ति है' यह नैयायिकों का विचार ठीक नहीं है क्योंकि 'यह (अर्थ) इस (पद) का शक्य है', 'इस (अर्थ) में इस (पद) की शक्ति है' इन (प्रयोगों) से, 'शक्ति' से भिन्न रूप में इस 'सङ्केत' की प्रतीति होती है । इसीलिये न्याय-सूत्र को वाचस्पति-टीका में कहा गया है- "सृष्टि के प्रारम्भ में होने वाले महर्षियों तथा देवताओं को ईश्वर ने साक्षात् सङ्केत किया। उनके व्यवहार से हम लोगों को भी वह सङ्केत सुलभ
यहां यह बताया गया कि 'सङ्केत' 'शक्ति' का बोधक है-'सङ्केत' में 'शक्ति' रहती है, अथवा इसे यों भी कह सकते हैं कि 'सङ्केत' घटित है तथा 'शक्ति' उसका घटक है ।इस रूप में एक आधार है तो दूसरा प्राधेय । अतः दोनों स्पष्टतः पृथक्-पृथक् हैं । इसलिये 'सङ्केत' को ही 'शक्ति' नहीं माना जा सकता । नैयायिकों को भी यह बात अभिमत है, यह बताते हुए ग्रन्थकार ने यहां वाचस्पति मिश्र की तात्पर्य टीका से एक स्थल प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है । नागेश के 'अतएव' का अभिप्राय यह है कि 'सङ्केत' 'शक्ति' का बोधक है, इसलिये उसे 'शक्ति' का बोधक मानते हुए ही १. तुलना करो-न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका (२।१।५५);
सोऽयं वृद्धव्यवहारः साम्प्रतिकानां सङ्केत ग्रहोपायः । सर्गादि-भुवां तु महषिदेवतानां परमेश्वरानुग्रहाद् धर्मज्ञान-वैराग्यश्वर्यातिशयसम्पन्नानां परमेश्वरेण सुकर एव संकेतः कर्तुम् । तद्व्यवहाराच्च अस्मदादीनाम् अपि सुग्रहः सङ्केतः ।
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