Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
३०
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
कार्यं दृष्ट्वा अनुमीयते । असौ सम्बन्धः 'शक्तिनाम् ' प्रपि कार्य-जनने उपकारकः । ' गुणानाम्' अपि द्रव्याश्रितत्वनियामकः" इति हेलाराजः' ।
इसलिये ( 'शक्ति' के साथ सम्बन्ध की अनिवार्य सत्ता का प्रतिपादन करते हुए) भर्तृहरि ने कहा :
किया
वह उपकार (सम्बन्ध) जहाँ है वहाँ ( ही ) धर्म (शक्ति) का अनुमान जाता है । ( इसलिये वह (सम्बन्ध) 'शक्तियों' की भी शक्ति (सामर्थ्य ) है तथा (रूप आदि गुणों की द्रव्याश्रितता में एकमात्र सम्बन्ध के नियामक होने के कारण) वह (सम्बन्ध ) ही गुणों ( परतन्त्र 'रूप' प्रादि) का भी 'गुण' (उपकारक) है |
'उपकार' (अर्थात् ) – उपकार्य (अर्थ) एवं उपकारक (शब्द) इन दोनों की बोध-शक्तियों का उपकार करने के स्वभाव वाला - 'सम्बन्ध' जहाँ है वहाँ कार्य ( शाब्द बोध आदि) को देख कर ( 'शक्ति' रूप ) धर्म (काररण) का अनुमान किया जाता है । ( इसलिये) वह सम्बन्ध 'शक्तियों' के कार्योत्पादन में उपकारक है तथा ('रूप' आदि) गुण द्रव्य के प्राश्रित हो होते हैं इस बात का नियामक है" यह हेलाराज की व्याख्या है ।
'उपकार्य' अथवा बोध्य है 'अर्थ' तथा उसका 'उपकारक' अथवा बोधक है 'शब्द' । इन दोनों 'उपकार्य' तथा 'उपकारक', अर्थात् 'शब्द' और 'अर्थ' में 'शक्ति' की सत्ता मानी जाती है । 'शब्द' में वाचकता रूप 'शक्ति' है तथा 'अर्थ' में वाच्यता रूप 'शक्ति' । इन दोनों 'शक्तियों' का उपकारक होने के कारण वाच्य वाचक-भाव के नियामक ' तादात्म्य' आदि सम्बन्धों को वाक्यपदीय में 'उपकार' कहा गया है । इसी प्रकार 'शक्तियों' को 'धर्म' कहा गया है, क्योंकि 'शक्तियाँ', 'धर्म' के समान, शब्द तथा अर्थ में रहने वाला एक शाश्वत तत्त्व है ।
हेलाराज वाक्यपदीय के टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । सम्प्रति वाक्यपदीय के तृतीय काण्ड पर ही इनकी टीका उपलब्ध है । पर इनके अपने कथन --- काण्ड-द्वये यथावृत्ति सिद्धान्तार्थ - सतत्त्वतः - से यह स्पष्ट है कि इस विद्वान् ने अन्य दो काण्डों पर भी अपनी टीका लिखी थी । ( द्र० संस्कृतव्याकरणशास्त्र का इतिहास, भाग २, पृ० ३५५-५६)
परन्तु हेलाराज के नाम से जो पंक्तियां यहाँ उद्धृत हैं उनमें तथा इस कारिका की सम्प्रति उपलब्ध हेलाराज की टीका के शब्दों में कोई भी साम्य नहीं है । साथ ही यह १. तुलना करो :- सम्प्रति उपलब्ध हेलाराज की निम्न टीका :
उपकार्योपकारकयोर् उपकार - प्रभावितः सम्बन्धः । असम्बद्धानाम् उपकाराभावात् धर्मः इति नित्य- पारतन्त्यम् आह । धर्मित्वे स्वातनुख्यात् सम्बन्धान्तर प्राप्तेर् अनवस्थापातात् । न च शक्तिर् एव सम्बन्ध: । शक्तीनाम् अपि आधार-पारतन्त्र्ये नियत कार्य जनने च सम्बन्ध एव नियामको यतो गुणानाम् अपि च द्रव्याश्रितत्व - व्यावस्थापकः सम्बन्ध एव इति परतंत्राणाम् उपकारकत्वात् सर्वत्रानुमीयमान स्वरूपो नित्य - परतन्त्रः ।
(के० एस० अय्यर सम्पादित वाक्यपदीय, काण्ड ३, भाग १. पृ० १२६ )
For Private and Personal Use Only