Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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शक्ति-निरूपण
२१.
वह मधुर होगा गुडो मधुर ऐक्षवत्वात् । यद् यद् इक्षु-रस-निर्मितं तत् तन् मधुरम् । यथा शर्करादयः।
शाब्द-बोध में जाति अथवा धर्म को विशेषण अथवा 'प्रकार' बनाने के लिये ही कार्य अंश में ऊपर 'तत्' पद के साथ 'धर्म' पद का प्रयोग किया गया । इसलिये जब कभी 'गुडः' कहा जायगा तो 'गुडः' पद तथा उसकी गुड-पदार्थ-विषयक वृत्ति को जानने वाले श्रोता को गुडत्वावच्छिन्न गुडपदार्थ विषयक ही शाब्दबोध होगा, क्योंकि कार्यकारणभाव का यही स्वरूप निश्चित किया गया है । हां 'मधुरः' शब्द का प्रयोग करने पर अवश्य श्रोता को मधुरत्व धर्म से विशिष्ट मधुर गुण का बोध होगा-यहां इस बोध में 'मधुरता' को 'प्रकार' माना जायगा।
नैयायिकों ने शाब्दबोध को 'फल', पद के ज्ञान को 'करण', शब्द के अर्थ की स्मृति को 'द्वार' तथा शब्द की वृत्ति के ज्ञान को 'सहकारी कारण' कहा है । द्रष्टव्य---
पद-ज्ञानं तु करणं, द्वारं तत्र पदार्थ-धीः । शान्दबोधः फलं तत्र, शक्ति-धीः सहकारिणी ॥
(भाषा-परिच्छेद, का० सं० ८१)
['शाग्द-बोध' विषयक कार्य-कारण-भाव के प्रदर्शन-वाक्य में प्रथम 'तद्-धर्मावच्छिन्न' पद का प्रयोजन
विशेष्य-विशेषण-भाव-व्यत्यासेन गृहीत-शक्तिकस्य पुसो घट-पदाद् घटत्व-विशिष्ट-घट -बोधवारणाय 'तद्-धर्मा.
विच्छिन्न' इति । (घट' पद घट-विशिष्ट घटत्व का बोधक है इस प्रकार के) विशेष्यविशेषण-भाव के विपर्यय से शक्ति का जिसे ज्ञान है ऐसे (भ्रान्त) व्यक्ति को 'घट' पद से घटत्व-विशिष्ट घट का बोध न हो जाय इसलिये 'तद्-धर्मावच्छिन्न' यह अंश है।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, 'घट' पद से जो शाब्द-बोध होगा उसमें घटत्व विशेषण तथा घट विशेष्य है। अभिप्राय यह है कि 'घट' पद से घटत्व जाति से विशिष्ट घट का ज्ञान होता है। यही निर्धान्त ज्ञान है । परन्तु जो व्यक्ति भ्रम-वश यह जाने बैठा है कि 'घट' पद से घट-विशिष्ट घटत्व का बोध होता है उसे तो 'घट' पद से वैसा ही उलटा बोध होगा-अर्थात् घटत्व-विशिष्ट घट का बोध न होकर घट-विशिष्ट घटत्व का बोध ही होगा। क्योंकि जिस धर्म से विशिष्ट शब्द वाली 'वृत्ति' का जिसे ज्ञान होगा उसे उसी धर्म से विशिष्ट शाब्द-बोध भी होगा।
परन्तु यदि ऊपर के, शाब्द-बोध के कार्य-कारण-भाव के प्रदर्शक, वाक्य के कार्य अंश में से (प्रथम) 'तद्-धर्मावच्छिन्न' पद हटा दिया जाय तो नियम का रूप होगा-- शाब्द-बुद्धित्वावच्छिन्नं प्रति तद्-धर्मावच्छिन्न-निरूपित-वृत्ति-विशिष्ट-ज्ञानं हेतुः, १. निस०, काप्रशु० में 'घट' पद नहीं है।
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