Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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याकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मजूपा
[वृत्ति-विषयक संस्कार की सत्ता में प्रमाण तथा तीन प्रकार की वृत्तियाँ]
संस्कार-कल्पिका च वृत्ति-स्मृतिरेव शाब्द-बुद्धिरेव वेत्यन्यद् एतत् । सा च वत्तिस् त्रिधा---शक्तिः , लक्षणा
व्यंजना च । (वृत्ति-विषयक) संस्कार का अनुमान कराने वाली है 'वत्ति' की स्मृति तथा 'वृत्ति' की स्मृति का अनुमान कराने वाला है शाब्द-बोध- यह दूसरी बात है। और वह 'वृत्ति' तीन प्रकार की है --शक्ति (अभिधा), लक्षणा तथा व्यंजना। ___ऊपर 'वृत्ति'-विषयक संस्कार का उल्लेख हुआ था। उस वृत्ति-विषयक संस्कार की कल्पना में क्या प्रमाण है-किस आधार पर इस वृत्ति-विषयक संस्कार की सत्ता को स्वीकार किया जाय-इस विषय में यहाँ विचार किया गया है।
वैयाकरण यह मानते हैं कि 'वृत्ति'-विषयक स्मृति एक कार्य है और 'वृत्ति' का संस्कार, जो हमारी बुद्धि में विद्यमान रहता है, उस 'वृत्ति' विषयक स्मृति रूप कार्य का कारण अथवा हेतु है। यह वृत्ति-विषयक स्मृति श्रोता को होती ही है, इसलिये उसके हेतु के रूप में वृत्ति-विषयक संस्कार की सत्ता भी हमें माननी ही चाहिये । इसी तरह यदि यह पूछा जाय कि 'वृत्ति' की स्मृति के होने में क्या प्रमाण है' ? तो इसका उत्तर यह है कि शब्द को सुनने के बाद उसकी वृत्ति को जानने वाले श्रोता को एक विशेष प्रकार का शाब्द-बोध होता है। यह शाब्द-बोध रूप कार्य ही इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि वृत्ति-स्मृति भी होती ही है क्योंकि शाब्द-बोध का कारण वृत्ति-स्मृति है । इस प्रकार इन दोनों में कार्य-कारण-भाव रूप सम्बन्ध है। कोई भी कार्य अपने कारण के बिना उत्पन्न नहीं हो सकता। अतः शाब्द-बोध रूप काय भी तब तक उपस्थित नहीं हो सकता जब तक उस शब्द की वृत्ति की स्मृति न हो। पोर वृत्ति की स्मृति तब तक नहीं हो सकती जब तक उस वृत्ति का संस्कार विद्यमान न हो।
['शक्ति' के स्वरूप के विषय में नैयायिकों का मत]
तत्र शक्तिः कः पदार्थ इति चेद्? अत्र तार्किकाः,-'अस्मात् पदाद् अयम् अर्थो बोद्धव्यः' इत्याकारा 'इदं पदम् इमम् अर्थं बोधयतु' इत्याकारा वेश्वरेच्छा शक्तिर् लाघवात् । सैव' संकेतः सैव च सम्बन्धः । शक्तेर् यद्यपि विषयत्वलक्षण: सम्बन्धः पदे, अर्थे, बोधे च, तथापि बोध-निष्ठ-जन्यतानिरूपित-जनकतावत्त्वेन शक्ति-विषयो वाचकः, पदजन्यबोध-विषयत्वेन शक्ति-विषयो वाच्यः, इति
१. ह.-चेश्वरेच्छा। २. प्रकाशित सस्करणों में-सैव संकेतः सम्बन्धः । ३. ह.-विषयत्व-लक्षण-सम्बन्धः । ४. ह०, वंमि० ---शक्ति-जन्य ।
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