Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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२०
वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि कार्य अंश तथा कारण अंश दोनों में 'धर्म' (घटत्वादि) पद के संयोजन से दोनों के स्वरूप को प्रतिव्याप्ति दोष से मुक्त कर दिया गया है । इस 'धर्म' पद के प्रयोग से कार्य-कारण का पूरा स्वरूप इस प्रकार होगा - 'घटत्व रूप धर्म से विशिष्ट घट-पदार्थ-विषयक शाब्दबोध रूप कार्य के प्रति उसी घटत्व रूप धर्म से विशिष्ट जो घट पदार्थ उस विषय वाली अथवा उससे सम्बद्ध 'वृत्ति' का ज्ञान कारण है । इन दोनों 'धर्म' पदों के विशेष प्रयोजन का उल्लेख इसी प्रसंग में आगे किया जायगा ।
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प्रकारता - 'प्रकार' का अभिप्राय है 'विशेषण । अतः 'प्रकारता' का अभिप्राय हुआ विशेषणता । प्रत्येक ' शाब्दबोध' में 'प्रकारता' (विशेषरणता ) तथा विशेष्यता ये दोनों रूप पाये जाते हैं । जैसे— 'गौ' कहने पर 'गौ' व्यक्ति का जो बोध होता है उसमें 'गोत्व' रूप धर्म अथवा 'जाति' विशेषरण ( ' प्रकार ) है तथा 'गौ' व्यक्ति ( पदार्थ या द्रव्य ) विशेष्य है । अर्थात् 'गौ' कहने पर इस शब्द से गोत्व जाति से विशिष्ट ( अवच्छिन्न) 'गौ' व्यक्ति का बोध होता है । इसी प्रकार ' अश्व:' कहने पर 'अश्वत्व' धर्म या जाति का ज्ञान 'प्रकारता' के रूप में होता है तथा 'अश्व' व्यक्ति का बोध विशेष्यता के रूप में होता है
श्रतएव च . जाति-प्रकारक:- ऊपर की व्याख्या से यह स्पष्ट है कि जिस घटत्व या पटत्व आदि धर्म से विशिष्ट 'घट' 'पट' पद-विषयक वृत्ति वाले शब्दों का उच्चारण किया जाता है उससे उसी घटत्व, पटत्व आदि धर्म से विशिष्ट घट, पट पदार्थ का बोध होता है । इस बोध में जाति 'प्रकार' है तथा पदार्थ ( द्रव्य ) विशेष्य । इस व्याख्या की से ही महाभाष्य का यह कथन सुसंगत होता है कि जब 'गुड : ' पद का प्रयोग किया जायगा तो उससे होने वाले बोध में 'गुडत्व' रूप धर्म ' प्रकार' (विशेषण) बनेगा तथा गुड पदार्थ विशेष्य होगा, अर्थात् गुडत्व - विशिष्ट गुड पदार्थ का बोध होगा । इस रूप में 'गुड : ' पद का वाच्य अर्थ, अर्थात् विशेष्य रूप गुड पदार्थ ( द्रव्य), 'गुडत्व' जाति रूप प्रकारता से अवच्छिन्न (विशिष्ट) है। इस बोध को 'जातिप्रकारकः' कहा जाता है, अर्थात् इस 'शाब्द- बोध' में जाति अथवा धर्म ' प्रकार' (विशेषण) है - जातिः प्रकारो यस्मिन् स जाति प्रकारको बोधः ।
मधुरत्वं गम्यम् - यहाँ यह प्रश्न किया जा सकता हैं कि यदि शाब्दबोध में, पदार्थ में समवेत, जाति अथवा धर्म ही विशेषरण बनता है, या उदाहरण के रूप में 'गुड : ' पद के प्रयोग से गुडत्व जाति से विशिष्ट गुड पदार्थ का ही बोध होता है, तो, 'गुड : ' पद के प्रयोग के उपरान्त श्रोता को मधुरता रूप धर्म की, जो गुड पदार्थ में समवेत जाति नहीं है, प्रतीति क्यों होती है ?
इस प्रश्न का उत्तर यहां यह दिया गया है कि 'गुडः' कहने पर मधुरता का ज्ञान 'प्रकार' अथवा विशेषण के रूप में कभी नहीं होता - यहां तो 'गुडत्व' जाति ही विशेषरण ( ' प्रकार ' ) बनेगी । परन्तु 'गुड' पद के प्रयोग से मधुरता रूप धर्म की जो प्रतीति होती है उसका आधार तो अनुमान प्रमाण है । यह अनुमान इस प्रकार किया गया कि गुड इक्षु-रस-निर्मित होता है इस कारण वह मधुर है, जो भी इक्षु-रस-निर्मित होगा
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