Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम-अध्याय
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होजाना ही प्रयत्न है वही हमारे यहाँ प्रयत्न अात्मा की क्रिया मानी गयी है, इस प्रकार स्याद्वादी विद्वानों करके निवेदन कर दिया गया है । अर्थात्- आत्मा का प्रयत्न ही आत्मा की क्रिया है जो कि आत्मा की पर्याय आत्मस्वरूप ही है यदि कोई धनिक घोडागाड़ी में बैठा ( लदा) जा रहा है या कोई रोगी डोली में बैठा जा रहा है यद्यपि परनि.मत्त से उस धनिक या रोगी की आत्माओं में क्रिया होरही है किन्तु यह उनका प्रयत्न नहीं है, अतएव प्रयत्न-स्वरूप क्रिया से युक्त होरहे प्रात्मा को शरीर अथवा अन्य द्रव्यों में क्रिया का हेतुपना कहा गया है तथा दूसरे तीसरे कारण माने गये धर्म, अधर्म, भी पुद्गल द्रव्य के पर्याय हैं, इस बात का हम प्रथम अध्याय में समर्थन कर चुके हैं, अतः ये धर्म अधर्म प्रात्मा के गुण नहीं हैं, ऐसी दशा में वैशेषिकों का आक्षेप सफल नहीं होसका।
सन्नप्यसौ प्रयत्नादिरास्मगुणः सर्वथात्मनो भिन्नो न प्रमाणसिद्धोस्तीति निवेदनात् कथंचित्तदभिन्मस्तु स तत्र क्रियाहेतुरित्यात्मव तद्धेतुरुक्तः स्यात् । तथा च कथमसिद्धो हेतुः ?
" अस्तुतोष न्याय " से उन प्रयत्न आदि को आत्मा का गुण भी मान लिया जाय जो भी वे प्रयत्न धर्म, और अधर्म ये आत्मा से सर्वथा भिन्न होरहे तो प्रमाणों से सिद्ध नहीं है, प्रात्मा से कथंचित् अभिन्न हो रहे ही प्रयत्न या भावपुण्य, एवं भावपाप होसकते हैं, इसका हम निवेदन कर चुके हैं । उस आत्मा से कथचित् अभिन्न होरहे प्रयत्न आदिक उन शरीर या अन्य द्रव्य में क्रिया के कारण हैं, यो । कहने पर तो वह आस्मा ही उस क्रिया का कारण है, यों कह दिया गया समझा जाता है । अभेद पक्ष के अनुसार एक की बात दूसरे कथञ्चित् अभिन्न में भी लागू होजाती है। और तिस प्रकार आत्मा को शरीर आदि की क्रिया का कारणपना सध जाने पर हम जैनों का ' द्रव्ये क्रियाहेतुत्व " यह हेतु भला प्रसिद्ध हेत्वाभास कैसे होसकता है ? अर्थात्-नहीं।
क्रियाहेतुगुणत्वाद्वा लोष्ठवत्सक्रियः पुमान्। धर्मद्रव्येण चेदस्य व्यभिचारः परश्रुतौ ॥४॥ न तस्य प्रेरणाहेतुगुणयोगित्वहानितः।
निमित्तमात्रहेतुत्वात्स्वयं गतिविवर्तिनाम् ॥ ५ ॥ प्रथवा आत्मा को क्रिया-सहित सिद्ध करने का दूसरा अनुमान यो समझिये कि प्रात्मा (पक्ष ) सक्रिय है ( साध्य ) क्रिया के हेतु होरहे गुणों को धारने वाला होने से ( हेतु ) डेल के समान (अन्वय दृष्टान्त ) । यदि यहां कोई वैशेषिक पण्डित दूसरे विद्वान् जैनों के शास्त्रों की सम्मति अनुसार धर्मद्रव्य करके इस हेतु का व्यभिचार उठावे कि जीव, पुलों की गति का कारण धर्म द्रव्य है या गति के हेतु होरहे “ गति-हेतुत्व " नामक गुण को धारने वाला धर्म द्रव्य है किन्तु वह सक्रिय नहीं