________________ सिद्ध-सारस्वत सद्धर्मवृद्धिरस्तु भारत देश का महानगर वाराणसी जैनों के चार तीर्थङ्करों (सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, श्रेयांसनाथ और पार्श्वनाथ) की जन्मभूमि से अत्यन्त पवित्र तीर्थ क्षेत्र है। यह अनादि काल से धर्म-प्रभावना का महान् केन्द्र रहा है। यहां हिन्दूओं, बौद्धों तथा जैनों की त्रिवेणी कहलती ही। कई शिक्षा के शोध संस्थान हैं जिनमें बी.एच.यू. सर्वाधिक प्रसिद्ध है। प्रो. जैन ने यही आलस्य छोड़कर निष्ठापूर्वक अध्ययन किया और 38 वर्षों तक यहीं अध्यापन एवं शोध निर्देशन किया। आपने विद्यार्थियों को धर्म, संस्कृति, दर्शन, साहित्य, संस्कृत, प्राकृत आदि विविध विषयों का ज्ञान कराया तथा सदाचार का पाठ पढ़ाकर महनीय योगदान दिया। जो अविस्मरणीय है। माता-पिता के संस्कारों से देव, शास्त्र और गुरु में अटूट श्रद्धा रखते हैं तथा श्रावकों के षडावश्यकों का पालन करते हैं। मैं जब 1991 में भदैनी स्थित श्री स्याद्वाद महाविद्यालय में रहता था तब प्रो. जैन विश्वविद्यालय कैम्पस में रहते थे और स्याद्वाद महाविद्यालय में सक्रिय योगदान देते थे। साधु-संतों की संगति करना, समाज को चतुराई से संगठित करना तथा छात्रों की उन्नति में सहायक बनना आपका लक्ष्य था। दक्षिण भारत के तीर्थक्षेत्रों से भी आपका सम्बन्ध था। वहाँ की संगोष्ठियों में जाकर शोधपूर्ण वक्तव्यों से सभी का मन मोह लेते रहे हैं। जैन काशी मूडबद्री के पूर्ववर्ती चारुकीर्ति आपके सहपाठी रहे हैं। आप जब सपत्नीक मूडबद्री आए थे तो उन्होंने आपको उस कक्ष में ठहराया था जहाँ भारत की पूर्वप्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी को ठहराया था। आपने जैन विद्यालय कटनी, मोराजी सागर, स्याद्वादमहाविद्यालय वाराणसी, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से ज्ञानार्जन किया। वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश स्वाध्याय के इन पाँचों भेदों के माध्यम से छात्रों एवं श्रावकों की शङ्काओं का समाधान किया। क्षमा, समता, आकिञ्चन नम्रता, विवेक आदि गुण आपमें शुरू से विद्यमान हैं। कई ग्रन्थों का प्रणयन, संपादन तथा अनुवाद किया। स्याद्वाद पत्रिका आपके छात्रजीवन में आपके प्रयत्न से पहली बार छपी उसके बाद नहीं छप सकी। राष्ट्रपति पुरस्कार भी आपको मिला समाज ने तो कई बार पुरस्कृत किया। आपके आदर्श गुरु श्री क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी, पं. जगन्मोहन लाल, पं. कैलाशचन्द्र, पं.हीरालाल, डॉ. नेमीचन्द ज्योतिषाचार्य, पं.दयाचंद सागर, प्रो. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य, पं. मूलशंकर शास्त्री आदि। आपकी 75वीं जन्मदिन जुबली पर जैनकाशी मूडबद्री तीर्थ की तरफ से अभिनन्दन। श्रीपार्श्वनाथ स्वामी, द्वादशाङ्ग श्रुत देवी तथा जिनशासन देवी-देवता आपका मङ्गल करें। इसी भावना के साथ 'सद्धर्मवृद्धिरस्तु' जिनशासन प्रभावात् भद्रं भूयात्। पाषाणेषु यथा हेम दुग्धमध्ये यथा घृतम्। तिलमध्ये यथा तैलं देहमध्ये यथा शिवः / / काष्ठमध्ये यथा वह्निः शक्तिरूपेण तिष्ठति।। तथा पण्डितेषु सिद्ध-सारस्वत-सुदर्शनः।। स्वस्तिश्री भट्टारक चारुकीर्ति, भट्टारक नगर,कर्नाटक श्रीजैन मठ मूडबद्री कुन्दकुन्दाचार्य मूलसंघ संस्थान