________________ सिद्ध-सारस्वत शुभाशीष संसार की सरकती सरिता में सबकुछ बह रहा है, बहता जा रहा है, स्थिरता के नाम पर यदि कुछ है तो आत्म तत्त्व। उस आत्मतत्त्व की प्राप्ति का एक ही उपाय है, जिनागम का स्वाध्याय और तदनुरूप आचरण। पं. सुदर्शनलाल जैन जी ने अभावों में रहकर भी सरस्वती की अर्चना करके उन्हें हृदयासन पर बिठाया है। 2015 के वर्षायोग में (जैन नगर भोपाल, नन्दीश्वर धाम लालघाटी, भोपाल) आपसे परिचित हुए, तभी आपके संस्कृत के ज्ञान से भी परिचय हुआ। सच में आपका ज्ञानार्जन आदर्श है। प्रेरणास्रोत भी है। भगवान् से यही प्रार्थना है कि आप अपनी अंतिम श्वास तक सरस्वती की सेवा, अध्ययन, लेखन, मनन-चिन्तन करते हुए ही जीवन को शुभोपयोगमय बनाये रखें। यही शुभाशीष है। प.पू. श्री 105 आर्यिका विज्ञानमति माता जी एवं प.पू. श्री 105 आर्यिका आदित्यमति माता जी आशीर्वाद (अभूतपूर्व प्रतिभा के धनी) भारतीय वसुन्धरा पर जन्म लेकर संस्कृत, हिन्दी प्राकृत साहित्य में एक नई दिशा नई रोशनी एवं नई ऊँचाई प्रदान करने वाले प्रो. सुदर्शनलाल जी बचपन से ही माँ के दिवंगत हो जाने पर भी तथा आर्थिक परेशानियों को झेलते हुए, धार्मिक साहित्य, संस्कृत साहित्य, सिद्धान्त एवं अन्य दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् बन गये। देश में ही नहीं विदेशों में भी आपने जैन सिद्धांतों की महती प्रभावना की है एवं महावीर भगवान के अहिंसामयी सिद्धान्त "जिओ और जीने दो" को नई दिशा प्रदान की है। आप जब चिन्तन की गहराई में डूब जाते हैं तो नये-नये विषयों का रहस्य उद्घाटित होता है। आप एक निश्छल, निरभिमानी, निराडम्बर, प्रखर वक्ता और स्पष्टवादी हैं। सेवा निवृत्त होने के बाद भी आप लेखन कार्य एवं सम्पादन कार्य में संलग्न है, जो सराहनीय है। आशीर्वाद स्वरूप आप भी इस मानव पर्याय के उच्चपद अर्थात् मुनिव्रत को धारण कर इसे सार्थक करें। प.पू. श्री 105 आर्यिका संभवमति माता जी