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दुसरे साधुवोंके कारण हो तो आचार्य इच्छा हो तो वैयावच करें करावें; परन्तु गणविच्छेदकको तो अवश्य वैयावश्च करना ही पडता है. वास्ते एक साधु अधिक रखना ही चाहिये.
( ९ ) ग्राम- नगर यावत् राजधानी बहुतसे आचार्योपाध्याय, आप सहित दो ठाणे, बहुत से गणविच्छेदक आप सहित तीन ठाणे शीतोष्णकालमें विहार करना कल्पै.
(१०) और आप सहित तीन ठाणे आचार्योपाध्याय, आप सहित व्यार ठाणे गणविच्छेदकको चातुर्मास रहना कल्पै. परन्तु साधु अपनी अपनी निश्रा कर रहना चाहिये. कारणकभी अलग अलग जानेका काम पडे तो भी नियत कीये हुवे साधुवोंको साथ ले विहार कर सके. भावना पूर्ववत्.
( ११ ) आचारांग और निशीथसूत्रके जानकार साधुको आगेवान करके उन्होंके साथ अन्य साधु विहार कर रहे थे. कदाचित् वह आगेवान साधु कालधर्मको प्राप्त हो गया हो, तो शेष रहे हुवे साधुवोंकी अन्दर अगर आचारांग और निशीथसूत्रका जानकार साधु हो तो उसे आगेवान कर, सब साधु उन्होंकी आज्ञामें विचरना. अगर ऐसा न हो, अर्थात् सब साधु आचारांग और निशीथसूत्रके अपठित हो तो सब साधुवको प्रतिज्ञापूर्वक वहांसे विहार कर जिस दिशा में अपने स्वधर्मी साधु विचरते हो, उसी दिशामें एक रात्रि विहार प्रतिमा ग्रहन कर, उस स्वधर्मीयोंके पास आ जाना चाहिये. रहस्ते में उपकार निमित्त नहीं ठहरना. अगर शरीरमें कारण हो तो ठेर सके. कारण- निवृत्ति होनेके बाद पूर्वस्थित साधु कहे - हे आर्य ! ..एक दोय रात्रि और ठहरो कि तुमारे रोगनिवृत्तिकी पूर्ण खातरी हो. ऐसा मौकापर एक दोय रात्रि ठहरना भी कल्पै. एक दोष