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आत्मभावना वृत्तिसे पुनः उसी गच्छमें दीक्षा ले, बादमें तीन वर्ष हो जावे, काम विकारसे पूर्ण निवृत्त हो जाय, उपशान्त हो, इंद्रियों शांत हो, उसको योग्य जाने तो सात पद्वीमसे किसी प्रकारकी पट्टी देना कल्पै. भावना पूर्ववत्.
(२०) एवं गणविछेदक. (२१) एवं आचार्योपाध्यायभी समझना.
(२२) साधु बहुश्रुत ( पूर्वागके जान ) बहुत आगम, वि. धाके जानकार, अगर कोइ जबर कारण होने पर मायासंयुक्त मृषावाद-उत्सूत्र बोलके अपनी उपजीविका करनेवाला हो, उसे नावजीव तक सात पद्वी से किसी प्रकारकी पही देना नहीं
कल्पै.
भावार्थ-असत्य बोलनेवालोंकी किसी प्रकारसे प्रतीति नहीं रहती है. उत्सूत्र बोलनेवाला शासनका घाती कहा जाता है. सभीका पत्ता मिलता है, परन्तु असत्यवादीयोका पत्ता नहीं मिलता है. वास्ते असत्य बोलनेवाला पीके अयोग्य है.
(२३) एवं गणविच्छेदक. (२४) एवं आचार्य. (२५) एवं उपाध्याय.
(२६) बहुतसे साधु एकत्र हो सबके सब उत्सूत्रादि असत्य बोले.
(२७) एवं बहुतसे गण विच्छेदक. (२८) एवं बहुतसे आचार्य. (२९) एवं बहुतसे उपाध्याय.
(३०) एवं बहुतसे साधु, बहुतसे गणविच्छेदक, बहुतसे आचार्य, बहुतसे उपाध्याय एकत्र हुवे, माया संयुक्त मृषावाद