________________
और न तो उस साधुको पद्वी धारण करना कल्पै. अगर तीन वर्ष अतिक्रमके बाद चतुर्थ वर्षमें प्रवेश किया हो, वह साधु कामविकारसे बिलकुल उपशांत हुवा हो, निवृत्ति पाइ हो, इंद्रियों शांत हो, तो पूर्वोक्त सात पद्वीमसे किसी प्रकारकी पही देना और उस मुनिको पद्वी लेना कल्पै.
भावार्थ-भवितव्यताके योगसे किसी गातार्थको कर्मोदय के कारणसे विकार हो, तो भी उसके दिलमें शासन वसा हुवा है कि वह गच्छ, वेष छोडके अकृत्य कार्य किया है, और काम उपशांत होनेसे अपना आत्मस्वरुप समझ दीक्षा ली है. ऐसेको पट्टी दी जावे तो शासनप्रभावनापूर्वक गच्छका निर्वाह कर सकेगा.
(१७) इसी माफिक गण विच्छेदक. (१८) एवं आचार्योपाध्याय. .
भावार्थ-अपने पदमें रहके अकृत्य कार्य करे, उसे जावजीव किसी प्रकारकी पद्वी देना और उन्होंको पद्वी लेना नहीं कल्पै. अगर अपने पदको, वेषको छोड पूर्वोक्त तीन वर्षों के बाद योग्य जाने तो पद्वी देना और उन्होंको लेना कल्पै. भावनापूर्ववत्.
(१९) साधु अपने वेषको विना छोडे और देशांतर विना गये अकृत्य कार्य करे, तो उस साधुको जावजीवतक सात पटीमेंसे कोइभी पढ़ी देना नहीं कल्पै.
भावार्थ - जिस देश, ग्राममें वेषका त्याग कीया है, उसी देश, ग्रामादिमें अकृत्य कार्य करनेसे शासनकी लघुता करनेवाला होता है. वास्ते उसे किसी प्रकारकी पद्वी देना नही कल्पै. अ. गर किसी साधुको भोगावली कर्मोदयसे उन्माद प्राप्ति हो भी जावे, परन्तु उसके हृदयमें शासन वस रहा है. वह अपना वेशका त्याग कर, देशान्तर जा, अपनी कामानिको शांत कर, फिर