Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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२८ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
समय आचार्यवर के साथ चौवीस साध और सत्ताईस साध्विया थी। साधुओ के छत्तीस और साध्वियो के पचास सिंघाडे (कुल ८६) अन्य क्षेत्रो मे चतुर्मास कर रहे थे । एक सौ इकतालीस साधु और तीन सौ चौतीस साध्विया उनके नेतृत्व मे आत्म-साधना और उसके साथ-साथ जन-कल्याण कर रही थी। उनके शक्तिगाली नेतृत्व मे धर्मसघ अभ्युदय के शिखिर का स्पर्श कर रहा था। प्रगति के नये उन्मेप नई सभावनाओ को खोज रहे थे।
आचार्यवर गगापुर पहुचकर बहुत प्रसन्न हुए। प्रसन्नता का पहला कारण था वचन का निर्वाह और दूसरा कारण था शारीरिक बाधाओ के होने पर भी लक्ष्य की पूर्ति । आचार्यवर प्रतिदिन प्रवचन करते थे। और भी दैनिक कार्यक्रम पूर्ववत् चलता था। पर स्वास्थ्य दिन-दिन चिन्तनीय वनता जा रहा था। घाव भरा नही था। मधुमेह की मात्रा मे कभी नहीं हुई। अन्न की अरुचि हो गई। ज्वर सतत् रहने लगा। लीवर विकृत हो गया। खासी भी सताने लगी। शरीर मे शोथ हो गया। एक शरीर अनेक रोग। रोग ने एक ऐसे महापुरुष ५२ आक्रमण किया, जिसकी वेदना केवल उसी को नही, अनगिन श्रद्धालुओ को अभिभूत कर रही थी। रोगी वीर योद्धा की भाति रोगो से जूझ रहा था और उसके श्रद्धालु उस युद्ध मे उसका साथ नहीं दे पा रहे थे, किन्तु प्राण का मोह उन्हें त्रास दे रहा था।
प० रघुनन्दनजी की चिकित्सा
चतुर्मास का प्रारभ हुआ, तब प० रघुनन्दनजी के आमगन की प्रतीक्षा की जाने लगी। पंडितजी चतुर्मास मे प्राय आचार्यवर की सन्निधि मे रहते थे। वे श्रावण मे आते और दीवाली के आसपास अपने घर चले जाते । श्रावण के शुक्ल पक्ष मे पडितजी आए। आचार्यवर के शरीर को देखकर वे स्तब्ध रह गए। यह क्या हुआ जैसे शतदल कमल के वन पर तुपारापात हो गया हो। उन्हे अपनी आखो पर भरोसा नही हुआ। मत्री मुनि मगनलालजी से पूछा यह क्या हो गया? उन्होने कहा पडितजी | कुछ समझ मे नही आ रहा है । एक छोटी-सी फुन्सी निकली थी। यह सब उसी का विस्तार है। पुरानी कहावत चरितार्थ हो गई छोट व्रण, चिनगारी, छोटे क्षण और अल्पप्राय कषाय की उपेक्षा नही करनी चाहिए। उपेक्षा करने पर उनका छोटा रूप भी बड़ा बन जाता है। हमने भी फुन्सी को छोटा समझकर उसकी उपेक्षा की। आज उसका रूप भयकर बन गया है । अव आप आचार्यवर के रोग का निदान कर चिकित्सा शुरू करें।
पडितजी के आने पर सभी बडे-बडे सत एकत्र हो गए। उनकी भावना का ज्वार प्रवल हो गया। वे बोले पडितजी ! इस बार आपके आगमन से हमे उतना ही हर्प हुआ है, जितना मेह के आने से मोर को होता है । यह छोटा क्षेत्र है। यहा