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जब संपूर्ण मौन होता है, तो तुम भीतर बद्धमूल और केंद्रित होते हो; जो कुछ घट रहा होता है, बस उसे देख रहे होते हो। पक्षी चहचहा रहे हैं, उनका कलरव सुनायी देगा; यातायात सड़क पर होता है, शोर सुनाई पड़ेगा। और बिलकुल उसी तरह, मन का आंतरिक यातायात होता है-शब्द होते, विचार होते, आंतरिक वार्ता होती। यातायात की ध्वनियां सुनाई पड़ेगी। लेकिन चुपचाप बैठे रहते हो, कछ न करते हए-होते हो एक सुक्ष्म तटस्थता। तम केवल देखते हो तटस्थ रूप से। तुम इसकी ??? नहीं करते कि यह इस ढंग से है या उस ढंग से। विचार आते हैं या कि नहीं आते हैं, तुम्हारे लिए एक ही बात होती है। न तो तुम उसके प्रति रुचि रखते हो और न ही विरोध। तुम सिर्फ बैठे रहते हो और मन का यातायात चलता रहता है। तुम बैठ सकते हो तटस्थ रूप से, पर ऐसा कठिन होगा, इसमें समय लगेगा। लेकिन तुम जान जाओगे तटस्थ होने का ढंग। यह कोई विधि नहीं, यह एक गर (नैक) होता है। विधि सीखी जा सकती है, गुर नहीं सीखा जा सकता। तुम्हें बस बैठ जाना होता है और अनुभव करना होता है उसे। विधि सिखायी जा सकती है, गुर नहीं सिखाया जा सकता; तुम्हें सिर्फ बैठना होता है और अनुभव करना होता है। किसी दिन किसी ठीक घड़ी में जब तुम मौन होते हो, तो अचानक तुम जानोगे कि यह कैसे घट गया, किस प्रकार तुम तटस्थ हो गए। यदि एक क्षण को भी जब भीड़ वहां होती है और तुम तटस्थ रहते हो, तो सहसा तुम्हारे और तुम्हारे मन के बीच की दूरी बहुत बड़ी हो जाती है। मन संसार के दूसरे छोर पर है। वह दूरी दर्शा देती है कि उस क्षण तुम केंद्र में होते हो। यदि तुम आए हो गुर का अनुभव करने को, तो किसी समय, कहीं, तुम एकदम केंद्र की तरफ सरक सकते हो। तुम थम सकते हो और तुरंत, एक तटस्थता, एक बड़ी तटस्थता तुम्हें घेर लेती है। उस तटस्थता में तुम मन द्वारा अछूते बने रहते हो। तुम हो जाते हो मालिक।
तटस्थता एक तरीका है मालिक हो जाने का; मन नियंत्रित होता है तो फिर क्या घटता है? जब केंद्र में होते हो, तब मन का भ्रम तिरोहित हो जाता है। भ्रम है, क्योंकि तुम हो परिधि पर। वस्तुत: मन नहीं है भ्रम। मन और तुम जुड़ते हो परिधि पर तो वही है भ्रम। जब तुम भीतर की ओर सरकते हो, तो धीरे-धीरे तुम देखोगे कि मन अपना विभ्रम खो रहा होता है। चीजें स्थिर हो रही होती हैं। चीजें एक सुव्यवस्था में पड़ रही होती हैं। एक निश्चित सुव्यवस्था उतर रही होती है।
मन बन जाता है शुद्ध स्फटिक की भांति।
सारी अशांति, भ्रम, उल्टी-सीधी विचारधाराएं, वह सब कुछ थम जाता है। यह बहुत कठिन होता है समझना कि सारा विभ्रम होता है तुम्हारे परिधि पर होने के कारण ही। और तुम, अपनी बुद्धिमानी के कारण, भ्रम को ठहराने की कोशिश कर रहे हो, वहीं परिधि पर बने रहने से।