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करते हो किसी स्त्री को, तब तुमने जान लिया होता है उसकी असली स्त्रीत्वमयी आत्मा को ही। अकस्मात वह हो जाती है असाधारण। प्रेम हर एक को असाधारण बना देता है।
प्रेम में ज्यादा गहरे उतरने में कठिनाइयां हैं, क्योंकि जितना ज्यादा गहरे तुम जाते हो, उतना ही तुम खोते हो स्वयं को। यदि तुम ज्यादा गहरे उतरते हो तुम्हारे प्रेम में, तो भय उठ खड़ा होता है, एक कंपन जकड़ लेती है: तुम्हें। तुम प्रेम की गहराई से बचना शुरू कर देते हो, क्योंकि प्रेम की गहराई मृत्यु की भांति ही है।
तुम अवरोध बना लेते हो तुम्हारे और तुम्हारे प्रिय के बीच, क्योंकि स्त्री जान पड़ती है अतल शून्य की भांति, तुम समाविष्ट किए जा सकते हो उसमें। और वह होती है अतल शून्य। तुम जन्म पाते हो स्त्री के भीतर से, इसलिए वह आत्मसात कर सकती है तुम्हें। यही होता है भय। वह है गर्भाशय, अगाध शून्य। जब वह जन्म दे सकती है तुमको, तो मृत्यु क्यों नहीं? वास्तव में, जो तुम्हें जन्म दे सकता है केवल वही दे सकता तुम्हें मृत्यु। तो भय होता है। स्त्री खतरनाक है, बहुत रहस्यपूर्ण है। तुम नहीं रह सकते उसके बिना और तुम नहीं रह सकते उसके साथ। तुम उससे बहुत दूर नहीं जा सकते क्योंकि अधिक दूर तुम जाते हो, तो अचानक उतने ज्यादा साधारण हो जाते हो तुम। और तुम बहुत निकट नहीं आ सकते क्योंकि जितने ज्यादा तुम निकट आते हो, उतने ज्यादा तुम मिटते हो।
यही संघर्ष है प्रत्येक प्रेम का। तो करना पड़ता है समझौता-तुम बहुत दूर नहीं जीते, तुम बहुत निकट नहीं जाते। तुम कहीं ठीक बीच में खड़े रहते हो, स्वयं को संतुलित करते हुए। लेकिन तब प्रेम गहरे नहीं उतर सकता। गहराई उपलब्ध होती है केवल तब जब तुम सारे भय गिरा देते हो और तुम ज्यादा सोचे -समझे बिना, बड़ी तेजी से कूद पड़ते हो। खतरा होता है, और खतरा सच्चा होता है; प्रेम मार देगा तुम्हारे अहंकार को। अहंकार के लिए प्रेम विष है। तुम्हारे लिए वह जीवन है, किंतु अहंकार के लिए मृत्यु है। लगानी ही पड़ती है छलांग। यदि तुम आत्मीयता को विकसित होने देते हो, यदि -तुम ज्यादा और ज्यादा और ज्यादा निकट होते जाते हो और विलीन होते जाते हो स्त्री के स्त्रीत्व में, तब वह केवल असाधारण ही न रहेगी, वह हो जाएगी दिव्य, क्योंकि वह शाश्वतता का दवार बन जाएगी। जितना ज्यादा तुम स्त्री के निकट आते हो, उतना ज्यादा तुम अनुभव करते हो कि वह पार की किसी चीज का द्वार है।
ऐसा ही घटता है स्त्री को पुरुष के साथ। उसकी अपनी समस्याएं हैं। समस्या यह होती है कि जितना ज्यादा निकट वह आती है पुरुष के, उतना ज्यादा उससे भागना शुरू कर देता है पुरुष। ज्यादा निकट आती है स्त्री तो पुरुष होता जाता है अधिकाधिक भयभीत। स्त्री जितना और निकट आती है, उतना ज्यादा भागने लगता है पुरुष उससे। दूर जाने के हजारों बहाने खोज लेता है।