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अवकाश-प्राप्त लोग उससे कुछ ज्यादा जल्दी ही मर जाते हैं, जब जिस समय कि उन्हें वास्तव में मरना होता-करीब दस वर्ष ज्यादा जल्दी मर जाते हैं। यदि किसी आदमी को मरना था अस्सी वर्ष की आयु में तो नौकरी से रिहा कर दो उसे साठवें वर्ष पर और वह मर जाएगा सत्तर वर्ष की आयु में। खाली बैठे –बैठे करोगे क्या? तुम धीरे – धीरे मर जाते हो।
आदतें बन जाती हैं और मन धारण कर लेता है वृत्तियां। तुम सुस्त होते हो लेकिन तुम्हें काम करना पड़े तो मन की आदत है काम करने की। अब तुम विश्राम नहीं कर सकते। यदि तुम निवृत्त भी हो जाओ, तो तुम बैठ नहीं सकते, तुम ध्यान नहीं कर सकते, तुम आराम नहीं कर सकते, तुम सो नहीं सकते। मैं देखता हूं कि साधारण दिनों की अपेक्षा लोग छुट्टियों में ज्यादा बेचैन होते हैं। इतवार एक कठिन दिन है, उन्हें पता नहीं होता कि क्या करना है। काम के छह दिन वे प्रतीक्षा कर रहे होते हैं इतवार की। छह दिन तक वे आशा बनाते हैं कि इतवार आने वाला है. 'बस और एक दिन, और इतवार आ ही रहा है, और तब हम आराम ही करेंगे।' और इतवार को सुबह से वे समझ नहीं पा रहे होते कि करेंगे क्या।
पश्चिम में, लोग चले जाते हैं अपनी रविवार या वीकएण्ड की यात्राओं पर : वे जाते हैं समुद्र तट की
ओर या पर्वतों की ओर। सारे देश में एक पागल हड़बड़ाहट होती; हर कोई भागा जा रहा होता है कहीं न कहीं। कोई नहीं सोचता कि हर कोई जा रहा है समुद्र-तट पर, तो वे कहां जा रहे हैं?-सारा शहर वहीं होगा। बेहतर होता यदि वे घर पर ही रुक गए होते। वह बात ज्यादा समुद्र तट जैसी होती। तुम अकेले होते और सारा शहर जा चुका होता। हर कोई चला गया होता है समुद्र के किनारे। और ज्यादा दुर्घटनाएं घटती हैं छुट्टियों में, लोग ज्यादा थके हुए होते हैं। वे सौ मील जाते हैं और सौ मील लगते हैं लौटने में और वे थक जाते हैं।
मैंने सुना है, कहा जाता है कि रविवार के दिन लोग इतना थक जाते हैं कि सोमवार, मंगलवार और बुधवार-इन तीनों दिनों में वे आराम करते हैं और उत्साह को फिर से प्राणवान बनाते हैं, और तीन दिनों तक वे प्रतीक्षा करते हैं और फिर आशा करते हैं रविवार की। तो जब रविवार आता है वे फिर से थक जाते हैं!
लोग आराम नहीं कर सकते, क्योंकि आराम करने के लिए चाहिए एक अलग दृष्टिकोण। यदि तुम आलसी हो, और तुम काम करते हो, तो मन बना लेगा कुछ न कुछ। यदि तुम आलसी नहीं, तब भी मन निर्मित कर लेगा कोई न कोई बात। मन और तुम्हारे गुण सदा वंद्व में रहेंगे। पतंजलि कहते हैं कि ये ही हैं कारण कि लोग दुख में पड़े हैं। तो करना क्या होगा? कैसे बदल सकते हो तुम इन कारणों को? वे तो ० ही हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता। केवल तुम्हें बदला जा सकता है।
भविष्य के दुख को विनष्ट करना है।