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यदि तुम ध्यान दो तो तुम हैरान होओगे इससे कि कितने खजाने तुम चूकते रहे जरा ध्यान देनाजब तुम प्रसन्न होते हो तो तुम उतनी गहराई में कभी नहीं होते, जितने कि जब तुम उदास होते हो। उदासी की अपनी एक गहराई होती है; प्रसन्नता में एक उथलापन होता है।
जाओ और जरा ध्यान से देखो प्रसन्न व्यक्ति को। वे तथाकथित प्रसन्न व्यक्ति, वे प्लेब्बॉयज् और प्लेगर्लज् – जिन्हें तुम पाओगे क्लबों में, होटलों में थियेटरों में वे सदा मुस्कुरा रहे होते हैं और लबालब भरे होते हैं प्रसन्नता से तुम सदा उन्हें पाओगे उथला, सतही उनमें कोई गहराई नहीं होती है। प्रसन्नता तो मात्र सतह की लहरों की भांति होती है, तुम जीते हो एक उथला जीवन, ऊपर - ऊपर ही लेकिन उदासी की एक अपनी गहराई होती है जब तुम उदास होते हो तो यह बात सतह की लहरों की भांति नहीं होती, यह बिलकुल प्रशांत महासागर की गहराई जैसी होती है : मीलों मीलों तक चली गयी।
गहराई में उतरो ध्यान से देखो उसे प्रसन्नता बड़ी शोर भरी होती है, उदासी में मौन होता है, एक अपनी शाति होती है। प्रसन्नता होगी दिन की भाति, उदासी होती है रात्रि जैसी । प्रसन्नता हो सकती है प्रकाश की भाति, उदासी होती है अंधकार जैसी प्रकाश आता है और चला जाता है; अंधकार बना रहता है - वह शाश्वत है। प्रकाश घटता है कभी-कभी; अंधकार तो सदा ही मौजूद रहता है। यदि तुम उदासी में, तो ये सारी चीजें अनुभव में आएंगी। अचानक तुम सजग हो जाओगे कि उदासी किसी उपस्थिति की भांति होती है, तुम ध्यान दे रहे होते हो और देख रहे होते हो और अचानक तुम प्रसन्नता अनुभव करने लगते हो। इतनी सौंदर्यपूर्ण उदासी! अंधकार का फूल, शाश्वत गहराई का फूल एक विराट अतल शून्य की भाति इतना संगीत जरा-सा भी शोर नहीं, कोई अशाति नहीं अनंत रूप से इसमें और और उतर सकते हो, और इसमें से बाहर आ सकते हो नितांत ताजे और युवा होकर यह एक विश्राम होता है।
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यह निर्भर करता है दृष्टिकोण पर जब तुम उदास होते हो, तो तुम सोचते कि कुछ बुरा हुआ है तुम्हारे साथ यह — व्याख्या ही होती है कि कुछ बुरा घटित हुआ है तुम्हारे साथ, और फिर उससे तुम बचने की कोशिश करने लगते हो। तुम कभी उस पर ध्यान नहीं करते। फिर तुम किसी के पास चले जाना चाहते हो पार्टी में, कि क्लब में, या टी वी चला देते हो या कि रेडियो या अखबार पढ़ने लगते हो -कुछ न कुछ तो करते हो ताकि भूल सकी यह एक गलत दृष्टिकोण दे दिया गया है तुम्हें कि उदासी गलत है। कुछ बुराई नहीं है उसमें वह एक दूसरा छोर है जीवन का ।
प्रसन्नता एक ध्रुव है, उदासी दूसरा ध्रुव है। आनंद एक ध्रुव है, पीड़ा दूसरा जीवन दोनों से बनता है, और दोनों के कारण ही जीवन संतुलित होता है, लयबद्ध होता है। केवल आनंदपूर्ण जीवन में विस्तार होगा, लेकिन गहराई न होगी। केवल उदासी वाले जीवन में गहराई होगी, लेकिन उसका विस्तार न होगा। उदासी और प्रसन्नता दोनों से बना जीवन बहु आयामी होता है; वह एक साथ सारे आयामों में बढ़ता है।
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