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भीतर कॉर्नफ्लेक्स हैं भी या नहीं। वे तो बस बेच रहे हैं सुंदर पैकेट, डिब्बे, लेकिन खाली। उन्हें डर नहीं
इसी तरह गलत लोग ठीक लोगों को चलन से बाहर कर देते हैं। उन्हें कछ फिक्र नहीं होती कि कोई चीज सस्ती है, वे तो बस जोर से चिल्लाते रहते हैं। और निस्संदेह जब कोई जोर से चिल्लाता है, तो लोग सुनते हैं। जब कोई बहत जोर से और इतने आत्मविश्वास से चिल्लाता है, तो लोग आ जाते हैं उसकी पकड़ में।
भयभीत मत होओ। केवल तुम्हारे भयभीत होने से ही तुम गलत चीजों को बाजार से बाहर नहीं ला सकते। उन्हें बाहर करने का एकमात्र तरीका है-ठीक चीज को ले आना। और यदि तुम्हारे पास ठीक चीज है, तो पुकारों छतों पर चढ़ कर। फिक्र मत करो; जितनी जोर से तुम चिल्ला सकते होचिल्लाओ। वही है एकमात्र ढंग जिससे चीजें चलती हैं संसार में।
जीसस ने कहा है अपने शिष्यों से, 'दुनिया के दूरतम कोनों तक जाओ। रूपांतरण करो लोगों का। और घर की छतों पर चढ़कर चिल्लाओ, ताकि हर कोई सुन सके। तब हर कोई जान सकता है कि सत्य क्या है।' बुद्ध ने कहा है अपने शिष्यों से, 'जाओ, और एक ही स्थान पर लंबे समय के लिए मत ठहर जाना, क्योंकि यह दुनिया बड़ी है।' बुद्ध के वचन हैं, 'चरैवेति, चरैवेति' –बढ़ते जाना, बढ़ते जाना! बहुत से अभी तक बचे हैं सत्य को सुनने को। ठहर मत जाना, आराम में मत पड़ जाना—'चरैवेति! चरैवेति!' आगे बढ़ते जाना, निरंतर आगे ही, क्योंकि पूरी पृथ्वी संदेश की प्रतीक्षा में है।
भयभीत मत होओ। यदि तुम अनुभव करते हो कि तुम्हारे पास ठीक कॉर्नफ्लेक्स हैं लोगों के लिए तो- चले जाना बाजार में। हिचकना मत, साहस जुटाना, क्योंकि केवल डिब्बे ही बेचे जा रहे हैं, जब कि तुम्हारे पास तो कॉर्नफ्लेक्स हैं डिब्बे में, जो कि एकमात्र तरीका है जिससे कि खाली डिब्बे चलने से बाहर किए जा सकते हैं। और कोई-तरीका नहीं। इसमें कुछ बुरा नहीं है। बाजार एक स्वतंत्र होड़ है हर चीज के लिए। तुम्हारे पास उतना ही अवसर है जीतने का जितना कि किसी और के पास।
ये समस्यायें सदा परेशान करती हैं उन लोगों को जिनके पास कुछ होता है, वे सदा हिचकते हैं। वे हिचकते हैं, क्योंकि यदि वे कुछ कहें, तो हो सकता है लोग अस्वीकृत कर देंगे उन्हें। कौन जाने? और अच्छे लोग सदा हिचकते हैं, बरे लोग सदा ही हठधर्मी होते हैं, अड़ियल होते हैं। इसीलिए संसार को बुरे लोगों ने जीता है और अच्छे लोग सदा खड़े रहे हैं बाजार के बाहर, यह सं ; 'क्या करें और क्या न करें?' जब तक कि वे निर्णय करते हैं, सारा बाजार भर गया होता है झूठी चीजों से।
विशेष कर पश्चिम में ऐसा ही है, क्योंकि अब पश्चिम में मनुष्य से व्यक्तिगत रूप से संपर्क बनाना असंभव हो गया है। तुम्हें सभी संप्रेषणीय प्रचार साधनों का उपयोग करना पड़ता है। बुद्ध के समय में बात बिलकुल ही दूसरी थी-बुद्ध घूमते रहते और लोगों से मिलते प्रत्यक्ष रूप से ही। अखबार नहीं थे, न ही रेडियो, न टेलीविजन। लेकिन अब लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलना मुश्किल हो गया