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नहीं, तो गिरा देना उस बुद्धिमानी को और चले आना मेरे पास। बुद्धि के हिसाबों से बिलकुल पार हुए व्यक्ति के संग हो लेना। यदि बुद्धि के द्वारा कुछ घटित नहीं होता है, तो हो सकता है वह अबुद्धि के द्वारा घटित हो सकता हो।' तुरंत वे कहते हैं, 'लेकिन आप तो विरोधात्मक हैं! कभी आप यह कहते, कभी आप वह कहते, और हमें पता नहीं कि करना क्या है।'
मैं सचमुच नहीं चाहता कि तुम कुछ करो, मैं चाहता हूं तुम होओ। मैं तुम्हें बौद्धिक नहीं बनाना चाहता। वे बहुतेरे हैं; संसार भरा पड़ा है उनसे और वे जीते हैं बड़ी दुखी जिंदगी। तुम्हें बौद्धिकों से ज्यादा दुखी लोग नहीं मिल सकते। वे तो जीते -जी आत्महत्या करते हैं। वे आत्मघाती, अर्थहीन जीवन जीते हैं। अर्थ अतयं होता है, जीवन की सच्ची कविता विरोधात्मक होती है। कुछ नहीं किया जा सकता इसके लिए। यही जीवन का स्वभाव है, यही है अस्तित्व का ढंग।
मैं तुम्हें किसी निश्चित दृष्टिकोण में प्रशिक्षित करने को नहीं हूं यहां। इसीलिए मैं तुम्हारे साथ कृष्णमूर्ति की बात कर सकता हूं। वे भी ठीक हैं, लेकिन ठीक होने के केवल एक दृष्टिकोण से जुड़े हैं। मैं तुमसे बात करता हूं गुरजिएफ की : वे भी ठीक हैं, लेकिन ठीक होने का केवल एक दृष्टिकोण लिए हैं। और वे विरोधाभासी हैं; गुरजिएफ विश्वास करते हैं विधि में, समूह में, निश्चित ढंग में, शिक्षा में, प्रशिक्षण में, अनुशासन में, बहुत कड़े अनुशासन में। कृष्णमूर्ति किसी विधि में विश्वास नहीं करते-न ध्यान में, न समूह में, न गुरु में, न शिष्यत्व में। मैं कहता हूं तुमसे कि दोनों ठीक हैं, लेकिन दोनों केवल आशिक रूप से ही ठीक हैं। एक साथ वे बनते हैं संपूर्ण।
जीवन इतना विशाल है कि न तो कृष्णमूर्ति और न ही गुरजिएफ उसे एक व्यवस्था में ला सकते हैं। जीवन इतना विशाल है कि कोई समाप्ति नहीं ला सकता उसकी। सारे दृष्टिकोण उसमें समा सकते हैं, विपरीत दृष्टिकोण भी, और वे भी सत्य होते हैं। लोग हैं जिन्होंने पाया है विधियों द्वारा, गुरुओं
द्वारा; और लोग हैं जिन्होंने पाया है बिना गुरुओं के, बिना विधियों के। ऐसे लोग हैं जो बाधित हुए हैं गुरुओं के द्वारा और विधियों के द्वारा, और ऐसे लोग हैं जो बाधित हुए हैं इस शिक्षा से कि गुरु की कोई जरूरत नहीं और ध्यान की कोई जरूरत नहीं, किसी विधि-विधान की कोई जरूरत नहीं। कई तरह के लोग हैं, और यह अच्छा है। अनेकरूपता है। तो कोई सिद्धांत सत्य नहीं हो सकता। बहुत थोड़े -से लोगों के लिए यह बात सत्य हो सकती है। लेकिन दूसरे सब लोगों के लिए यह बात असत्य होगी। इसलिए इतने सारे सिद्धांत अस्तित्व रखते हैं संसार में। बुद्ध हैं, जीसस हैं, मोहम्मद हैं : ऐसे बिलकुल ही अलग-अलग लोग हैं, और सभी सत्य हैं।
मैं प्रयत्न कर रहा हूं एक नितांत नए प्रयोग का. तुम सभी को एक साथ इकट्ठा कर देने का। यह स्वयं में एक अनुशासन होगा तुम्हारे लिए ऐसा ही है। यदि तुम मुझे सुन रहे हो कई वर्षों से, तो यह अनुशासन ही है। यह एक ध्यान हुआ। मैं तुम्हें दे देता हूं एक दृष्टिकोण मैं बोलूंगा पतंजलि पर, तो मैं तुम्हें दे दूंगा एक दृष्टिकोण और मैं एक ढांचा निर्मित कर दूंगा तुममें। अगले ही दिन मैं बोलने लगूंगा तिलोपा पर और मैं गिरा दूंगा वह ढांचा।