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असुरक्षा को समाए रहती है स्वयं के भीतर ही। वह इतनी विशाल होती है कि वह भयभीत नहीं होती असुरक्षा से। वह असुरक्षा को सोख लेती है स्वयं में ही, वह सारी विपरीत बातों को समाए रहती है। इसलिए कोई उसे कह सकता है असुरक्षा और कोई उसे कह सकता है -सुरक्षा। वस्तुत: वह इनमें से कुछ भी नहीं, या फिर दोनों ही है।
यदि तुम अनुभव करते हो कि तुम स्वयं के लिए अजनबी बन गए हो, तो उत्सव मनाओ इसका, अनुगृहीत अनुभव करो। बहुत विरल, अनूठी होती है यह घड़ी, आनंदित होओ इससे। जितना ज्यादा तुम आनंदित होते होः, उतना ज्यादा तुम पाओगे कि निश्चितता तुम्हारे ज्यादा निकट चली आ रही है, और – और तेजी से चली आ रही है तुम्हारी ओर। यदि तुम उत्सव मना सको तुम्हारे अजनबीपन का, तुम्हारे उखडाव का, तुम्हारी गृहविहीनता का, तो अचानक तुम पहुंच जाते हो घर-तीसरी अवस्था आ गयी होती है।
दूसरा प्रश्न:
आध्यात्मिक विषयों में भी पश्चिम बहुत अतिरेक से पीड़ित जान पड़ रहा है। बहुत से विभिन्न मार्ग हैं यह तो ऐसा हुआ जैसे कि सामने चुनने को सौ खाद्य पदार्थ पड़े हों और निर्णय के लिए कोशिश की जाए कि उनमें से कौन-सा प्रकार सर्वश्रेष्ठ है। हम आपके बारे में पश्चिम को कैसे बता सकते हैं बिना ऐसा प्रतीत हए कि जैसे आप भी बाजार में उपलब्ध एक और कॉर्नफ्लेक्स का पैकेट है?
यह संसार एक बाजार है, और इसके बाजार होने में जरा भी बुराई नहीं है। तुम बाजार के इतना
विरोध में क्यों हो? बाजार तो सुंदर होता है। तुम निकल सकते हो पर्वतों की ओर विश्राम के लिए, लेकिन अंततः तुम्हें लौटकर आना ही पड़ता है बाजार में। बाजार एक वास्तविकता है। पर्वत हो सकते हैं छुट्टियों के लिए, लेकिन छुट्टियां उतनी वास्तविक नहीं होती जितनी कि बाजार की वास्तविकता।
तुमने देखे होंगे झेन के दस बैल वाले f
वे। पहले चित्र में, बैल कहीं खो गया है। बैल है आत्मा का प्रतीक, और बैल का मालिक खोज में है। वह जाता है जंगल में, वह नहीं जान सकता कि कहां भाग गया बैल, कहौ छिपा बैठा है बैल, लेकिन वह खोजता जाता है। अगले चित्रों में वह खोज लेता है बैल के पदचिह्न। तीसरे चित्र में वह देखता है, कहीं बहुत दूर, केवल बैल की पीठ ही, वह देख सकता है उसकी पूंछ। चौथे चित्र में वह देख सकता है सारे बैल को और वह पकड़ लेता है पूंछ को। पांचवें चित्र में उसने साध लिया है बैल को, छठवें में वह बैल पर सवार हो चल देता है घर की ओर।