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जब सारी दीवारें खो जाएंगी और तुम सीधे-सीधे खुले आकाश के नीचे सत्य के आमने-सामने होओगे !
और जब मैं कहता हूं 'खुले आकाश के नीचे', तो स्मरण रहे कि आकाश कोई एक चीज नहीं, वह क चीज नहीं पन है। वह हर कहीं है, तो भी तुम उसे नहीं पा सकते कहीं। वह एक चीज नही- पन है। वह मात्र एक विशालता है। इसीलिए मैं कभी नहीं कहता कि 'परमात्मा विशाल है।' परमात्मा विशालता है। अस्तित्व विशाल नहीं, क्योंकि विशाल अस्तित्व में भी सीमाएं होंगी। चाहे कितना विशाल हो कहीं कोई सीमा जरूर होती है। अस्तित्व एक विशालता है।
यही है हिंदुओं की ब्रह्म की अवधारणा । ब्रह्म का अर्थ होता है वह कुछ जो विस्तीर्ण होता जाता है।' ब्रह्म शब्द का अर्थ ही यह है कि जो विस्तार पाता जाए। विस्तीर्णता ब्रह्म है। अंग्रेजी में इसके लिए कोई शब्द नहीं। तुम ब्रह्म को परमात्मा नहीं कह सकते, क्योंकि परमात्मा तो एक बहुत ही सीमित अवधारणा है। ब्रह्म परमात्मा नहीं है, इसीलिए भारत में हमारे पास एक ईश्वर की अवधारणा नहीं है, बल्कि बहुत ईश्वरों की है। ईश्वर बहुत से हैं, ब्रह्म एक है और ब्रह्म से, इस शब्द से, मेरा मतलब है विशालता, विस्तीर्णता तुम उसे व्यवस्थित नहीं कर सकते।
यही होता है अर्थ जब मैं कहता हूं, आकाश के नीचे, खुले आकाश के नीचे चारों ओर कोई दीवारें नहीं, सत्य का कोई सिद्धात नहीं, इंद्रियां नहीं, विचार नहीं, मन नहीं तुम बिलकुल बाहर होते हो यंत्र - रचना के। पहली बार तुम नग्न होते हो, सत्य के ऐन सामने होते हो। तब वहां एक पूरा परिप्रेक्ष्य होता है, विषय वस्तु को अनुभव किया जाता है, उसके पूरे परिप्रेक्ष्य में और विषय की प्रतीति उसके पूरे परिप्रेक्ष्य में करने का अर्थ होता है कि विषय बिलकुल खो जाता है और एक विशालता बन जाता है यह हो सकती है ऊर्जा के सकेंद्रित होने की बात ।
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यह बिलकुल ऐसे है, जब कि तुम जाते हो और देखते हो कुएं की ओर पानी की एक मात्रा वहां होती हैं कुएं में यदि पानी तुम खींचते हो बाहर तो ज्यादा पानी भेज दिया जाता है छिपे हुए जल स्रोतो द्वारा तुम नहीं देखते जल स्रोत को तुम पानी बाहर लाए चले जाते हो और नया पानी लगातार प्रवाहित हो रहा होता है। कुआं तो मात्र एक छिद्र है सागर का बहुत सारे छिपे । - स्रोत चारों हुए जलओर से पानी -रन रहे हैं। यदि तुम प्रवेश करते हो कुएं में, तब कुआं कुछ नहीं होता है। वस्तुत: वही जल –स्रोत ही हैं चीजें, वास्तविक चीजें। कुआं कोई टंकी नहीं, क्योंकि टंकी में जल – स्रोत होते नहीं । जल का संचित - भंडार मृत होता है, कुआं जीवंत होता है। संचित जल भंडार एक 'चीज' होता है, कुआं प्राणवान होता है। यदि बढ़ो जल स्रोत के साथ, और गहरे उतरी स्रोत में, तो अंत में तुम पहुंच जाओगे सागर तक। और यदि तुम बढ़ते हो सब स्रोतों के साथ, तब तमाम दिशाओं से सागर उमड़ आया होता है कुएं में वह सब एक है।
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