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सभी स्वप्न होते हैं। संत या पापी दोनों स्वप्न हैं। सुबह दोनों ही तिरोहित होते हैं, कहीं खो गए होते हैं। तुम अच्छे स्वप्न और बुरे स्वप्न के बीच कोई भेद नहीं कर सकते, क्योंकि अच्छी होने या बुरी होने के लिए चीज के वास्तविक होने की आवश्यकता होती है। भेद की कोई आवश्यकता भी नहीं यदि तुम जिंदगी को देख सकते हो, उस पर ध्यान दे सकते हो, उसे समझ सकते हो, और जान सकते हो कि यह बड़ा सपना है जो चलता चला जा रहा है। केवल द्रष्टा ही सत्य होता है, और वह सब जो दिखाई देता है वह स्वप्न है।
अचानक तुम सजग हो जाते हो और सारा संसार खो जाता है ऐसा नहीं है कि तुम तिरोहित हो जाओगे या कि मैं तिरोहित हो जाऊंगा, लेकिन वह संसार जिसे तुम जानते थे, तिरोहित हो जाता है। एक बिलकुल ही अलग सत्य उदघटित होता है। वह सत्य है ब्रह्म ।
आज इतना ही।
प्रवचन 39 - दुःख मुक्ति - द्रष्टा दृश्य वियोग से
योगसूत्र:
(साधनापाद)
परिणामतापसंस्कारदुः खैर्गुणवृत्तिविरोधाच्च ।
दुःखमेव सर्व विवेकिनः 11 1511
विवेकपूर्ण व्यक्ति जानता है कि हर चीज दुःख की और ले जाती है। परिवर्तन के कारण, चिंता के कारण, पिछले अनुभवों के कारण और उन द्वंदों के कारण जो तीन गुणों और मन की पाँच वृतियों के बीच में आ बनते है।
हेयं दुःख मनागतम्।। 16 //