Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 385
________________ आकाश खतरों से भरा है। मैं नहीं कहता कि वहां कोई खतरा नहीं है। मैं ऐसा कह नहीं सकता, खतरा तो है। खतरे ही खतरे हैं। लेकिन जीवन पल्लवित होता है खतरों में, खतरा ही है भोजन। खतरा जीवन के विरुद्ध नहीं; खतरा तो असली भोजन है, असली रक्त है, सही आक्सीजन जीवन के बने रहने के लिए। खतरे में जीयो यही है संन्यास का अर्थ। अतीत तुम्हारा बचाव करता है, वह ज्ञात होता, परिचित। तुम अतीत के साथ एक आराम अनुभव करते हो। भविष्य होता है अपरिचित। अज्ञात भविष्य के साथ तुम पराया, अजनबी अनुभव करते हो। भविष्य सदा ही द्वार पर दस्तक देता हुआ अजनबी होता है। तुम सदा द्वार खोल देना भविष्य के लिए। वस्तुत: तुम चाहते हो कि तुम्हारा भविष्य बिलकुल तुम्हारे अतीत की भांति ही हो, एक दोहराव। यह है भय। और ध्यान रखना, तुम सदा सोचते हो कि तुम भयभीत हो मृत्यु से, लेकिन मैं कहता हूं तुमसे, तुम भयभीत नहीं हो मृत्यु से, तुम भयभीत हो जीवन से। मृत्यु का भय मूल रूप से जीवन का भय है, क्योंकि केवल जीवन ही मर सकता है। यदि तुम भयभीत हो मृत्यु से, तो तुम भयभीत होओगे जीवन से। यदि तुम्हें भय होता है नीचे गिरने का, तो तुम्हें भय होगा ऊपर चढ़ने का। क्योंकि केवल वही लहर जो चढ़ती है, गिरती है। यदि तुम्हें अस्वीकृत होने का भय होता है तो तुम भयभीत रहोगे कि दूसरे के पास कैसे जाएं। यदि तुम्हें भय होता है अस्वीकृत होने का, तो तुम प्रेम करने में अक्षम हो जाओगे। मृत्यु से भयभीत होकर, तुम जीवन के प्रति अक्षम हो जाते हो। तब तुम बस जिंदा रहने भर को जिंदा रहते हो; और केवल दुख, अंधकार और काली रात तुम्हें घेरे रहती है। मात्र जन्म लेना ही पर्याप्त नहीं होता, आवश्यक नहीं होता। तुम्हें दो बार जन्म लेना है। हिंदुओं के पास इसके लिए प्यारा शब्द है वे इसे कहते हैं द्विज, दो बार जन्म लेने वाला। पहला जन्म, तुम्हारे माता-पिता दवारा दिया गया जन्म, मात्र एक संभावना है। एक संभावित घटना है, अभी वास्तविक नहीं है वह। दूसरे जन्म की आवश्यकता है। यही है जिसे जीसस कहते हैं पुनर्जीवन, दुसरा जन्म, जिसमें तुम सारे ढांचे तोड़ देते, सारे कवच तोड़ देते, सारे अहंकार, सारे अतीत को, परिचित को, ज्ञात को तोड़ देते और तुम सरकते अज्ञात में, अपरिचित में, खतरों से भरे हुए अस्तित्व में। हर क्षण संभावना रहती है मृत्यु की। और मृत्यु की संभावना के साथ ही हर क्षण तुम बन जाते हो और ज्यादा जीवंत। वस्तुत: जीवन कभी मरता नहीं है, लेकिन यह अनुभव होता है उस व्यक्ति को जो जानता है कि जीवन क्या है। तुमने कभी भी पर्याप्त साहस एकत्र नहीं किया है खोल से बाहर आने का। कैसे जान सकते हो तुम कि जीवन क्या है? और कैसे जान सकते हो तुम कि जीवन मृत्यु –विहीन होता है? तुम मर जाओगे, जीवन कभी नहीं मरता। तुम जीओगे दुख में क्योंकि तुम नकार देते हो जीवन कोअहंकार है जीवन का नकार। अहंकार को नकार दो और जीवन घटेगा तुममें। इसलिए सारे प्रज्ञावानों का जोर रहा है - जीसस, बुद्ध, मोहम्मद, महावीर, जरथुस्त्र, लाओत्सु –वे सभी जोर देते हैं केवल एक

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