Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 394
________________ होते। वे हो नहीं सकते वे जीते हैं मन के साथ। उनका मन प्रवाह भरा होता है, उनकी कविता की भांति। वह एक तरंगायित घटना है। उस स्त्री ने जोर दिया, वह जिद्दी थी, तो बायरन को झुकना ही पड़ा, उसे विवाह करना पड़ा उससे। वह बहुत आकर्षक हो गयी उसके लिए क्योंकि उसने समर्पण नहीं किया। यह बात तो उसके अहंकार का प्रश्न बन गयी। जैसे ही वे बाहर आ रहे थे चर्च से, तो चर्च के घंटे अभी भी बज रहे थे, और मेहमान विदा ले रहे थे। वे चर्च की सीढ़ियों पर ही थे और बायरन ने थामा हआ था उस स्त्री का हाथ, नवविवाहिता स्त्री का। अभी तो उससे संभोग भी न किया था उसने और अचानक उसे दिख गई सड़क पर जाती दूसरी स्त्री। जिस स्त्री का हाथ थामे हुए था उस स्त्री को तो बिलकुल भूल ही गया वह, और उसने कहा स्त्री से, 'यह बात अदभुत है, लेकिन पल भर को जब मैंने उस स्त्री को जाते हुए देखा, मैं तो बिलकुल ही भूल गया तुम्हें, मेरा विवाह और हर चीज। तुम्हारा हाथ नहीं रहा मेरे हाथ में; मुझे कुछ पता नहीं था।' स्त्री ने भी देखा था यह सब; तुम नहीं धोखा दे सकते स्त्री को। इससे पहले कि तुम देखो भी किसी दूसरी स्त्री की ओर, वे जान लेती हैं। तुम्हारे मन मै एक विचार की फड़फड़ाहट ही उठती और वे पता लगा लेती हैं उसका। वे बड़ी पहचान करने वाली होती हैं, झूठ को खोज लेने 'वाली। उस स्त्री ने भी बात जान ली थी, और वह बोली, 'मुझे पता था।' यह होता है मन। उसका रस अब समाप्त हो गया उस स्त्री में। विवाह हुआ और बात खत्म हो गयी, प्राप्ति और समाप्ति। अब कोई आवेश न रहा। अब उस पर अधिकार हो गया, वह संपत्ति कोई चुनौती न रही। अब चुनौती बना देती है उत्सुकता, क्योंकि तुम्हें संघर्ष करना पड़ता है तुम्हारे प्रयोजन के लिए। फिर जब तुम पा लेते हो, अधिकार जमा लेते हो, तो वह बात बना देती है एक दूसरी ही चिंता. यह चिंता कि तुम्हारे लिए समाप्ति हुई। सारी बात ही अब वह न रही। वह पहले से ही ऊब देने वाली है, पहले से ही मरी हुई है। बेचैनी सदा बनी रहती है क्योंकि जिस ढंग से तुम जीते हो, वह बना ही देता है बेचैनी। तुम संतुष्ट नहीं हो सकते। पिछले अनुभवों द्वारा, संस्कारों द्वारा तुम्हारा ताल-मेल बैठ जाता है किसी भी विशेष घटना के साथ और तब मन कहता कि उत्तेजना चाहिए, परिवर्तन चाहिए। तब सारा शरीर अशांत हो जाता। तो यह बात भी बेचैनी बनाती है। .......और वे वंद्व जो तीन गुणों और मन की पांच वृत्तियों के बीच आ बनते हैं। तो एक निरंतर संघर्ष मौजूद रहता है मन की वृत्तियों और तीन गुणों के बीच जिनके लिए हिंदू कहते कि वे तुम्हारे अस्तित्व को बनाते हैं। वे कहते हैं कि सत्व, रजस और तमस ये तीन घटक हैं मानव के व्यक्तित्व के। सत्व शुद्धतम है, शुभता का वास्तविक मूल, शुद्धता का, संपूर्ण सत्व का, तुममें रहने वाला पवित्रतम तत्व। फिर है रजस-ऊर्जा, बल, शक्ति, सत्ता का तत्व, और तमस है आलस्य, अकर्मण्यता और कर्महीनता का तत्व। ये तीनों संघटित करते हैं तुम्हारी सत्ता को। और ऐसा मालूम

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