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यदि चीजें नहीं बदलती हैं, तो तुम ऊब जाते हो। यदि पत्नी मुस्कुराती रहे और मुस्कुराती रहे रोजरोज तो कुछ दिनों बाद ही तुम थोड़े चिंतित हो जाओगे - क्या हुआ है इस स्त्री को? क्या इसकी मुस्कान असली है या कि यह केवल अभिनय ही कर रही है?
अभिनय में तुम मुस्कुराते रह सकते हो। तुम मुख पर ऐसा नियंत्रण रख सकते हो। मैंने देखा है लोगों को जो नींद में भी मुस्कुरा रहे होते हैं; राजनीतिज्ञ और इसी तरह के कई लोग जिन्हें निरंतर ही मुस्कुराना पड़ता है। तब उनके होंठ एक स्थायी आकार धारण कर लेते हैं। यदि तुम कहो उनसे कि मुस्कुराए नहीं, तो वे कुछ नहीं कर सकते। उन्हें मुस्कुराना ही पड़ेगा, वह बात एक ढंग बन चुकी होती है लेकिन तब ऊब आ बनती है, और वह ऊब तुम्हें ले जाएगी दुख की ओर।
स्वर्ग में हर चीज स्थायी होती, कोई चीज नहीं बदलती हर चीज वैसी बनी रहती है जैसी कि होती है - हर चीज सुंदर बर्ट्रेड रसल ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'मैं नहीं जाना चाहूंगा किसी जन्नत में कि किसी स्वर्ग में, क्योंकि वह बात बहुत ज्यादा उबाऊ होगी।' ही, वह बात बहुत उबाऊ होगी। जरा सोचो तो उस जगह की जहां कि सारे पंडित पुरोहित, पैगंबर, तीर्थकर और बुद्ध - पुरुष एकत्रित हो गए हों, और कुछ न बदलता हो, हर चीज निश्चल बनी रहती हो कोई गति न हो। यह तो रंगों से सजायी तस्वीर मालूम पड़ेगी, जो कि वास्तव में जिंदा न हो। कितनी देर तक तुम जी सकते हो उसमें? रसल ठीक कहता है, यदि यही स्वर्ग है, तब तो नरक बेहतर है कम से कम कुछ परिवर्तन तो होगा वहां । '
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नरक में हर चीज बदल रही होती है, लेकिन तब किन्हीं अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं की जा सकती है। यही है अड़चन मन के साथ यदि जीवन निरंतर गतिमय होता है, तो अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं हो सकती। यदि जीवन होता है एक निर्धारित घटना, तो अपेक्षाएं पूरी हो सकती थीं इतनी ज्यादा कि तुम
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ऊब महसूस करने लगते। तब कहीं कोई रस नहीं रहता। हर चीज धुंधली पड़ गयी होती, कुनकुनी - कोई संवेदना नहीं, कोई उन्मेष नहीं, कोई नई चीज नहीं घटती। इस जीवन में जिसमें कि तुम जी रहे हो, परिवर्तन बना देता है दुख, चिंता । सदा चिंता मौजूद होती है, तुम्हारे भीतर, मैं कहता हूं सदा ही । यदि तुम गरीब हो, तो चिंता होती है धन कैसे पा लें? यदि तुम धनवान बन जाते, तो चिंता होती है कि कैसे उसे बनाए ही रहें जिसे कि प्राप्त किया है? सदा भय रहता है चोरों का, डाकुओं का और सरकार का जो कि एक संगठित डकैती होती है। करों का भय है और कम्मुनिस्ट सदा आने आने को ही हैं। यदि तुम गरीब होते हो तो तुम्हें चिंता होती है कैसे पा लें धन? यदि तुम पा लेते हो तो तुम्हें चिंता होती है कैसे उसे पास बनाए रखें जिसे कि तुमने पाया है? लेकिन चिंता तो बनी ही रही है।
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अभी उस दिन एक जोडा आया मेरे पास और पुरुष कहने लगा, 'यदि मैं स्त्री के साथ होता हूं तो बेचैनी होती है, क्योंकि यह बात तो निरंतर संघर्ष की होती है। यदि मैं स्त्री के साथ न रहूं, तो यह एक निरंतर बेचैनी बनी रहती है; मैं अकेला हो जाता हूं।' स्त्री पास न हो तो अकेलापन बन जाता है