Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 391
________________ पतंजलि कहते हैं : 'विवेकपूर्ण व्यक्ति जानता है कि हर चीज दुख की ओर ले जाती है –परिवर्तन के कारण, चिंता के कारण, पिछले अनुभवों के कारण..।' ये वचन समझ लेने जैसे हैं। जीवन में हर चीज परिवर्तित हो रही है। जीवन के ऐसे गतिमय प्रवाह में तुम किसी चीज की अपेक्षा नहीं कर सकते। यदि तुम अपेक्षा करते हो तो तुम दुखी होओगे, क्योंकि अपेक्षाएं संभव होती हैं एक निश्चित और चिरस्थाई संसार में। बदल नेमय प्रवाह जैसे संसार में, किन्हीं अपेक्षाओं की संभावना नहीं होती है। तुम प्रेम करते हो किसी स्त्री से; वह बहुत ज्यादा प्रसन्न जान पड़ती है, लेकिन अगली सुबह वह नहीं रहती वैसी। तुमने उसे प्रेम किया था उसकी प्रसन्नता के कारण, तुमने उसे प्रेम किया क्योंकि उसकी गुणवत्ता थी प्रसन्नचित रहने की। लेकिन अगली सुबह वह प्रसन्नता मिट चुकी होती है! वह गुणवत्ता मौजूद न रही और वह स्वयं अपने से एकदम विपरीत हो चुकी है। वह दुखी होती, क्रोधित, उदास, झगडालु, काट खाने को आतुर होती है –करोगे क्या? तुम कोई आशा नहीं रख सकते। हर चीज बदलती है, हर चीज बदलती है हर पल। तुम्हारी सारी अपेक्षाएं तुम्हें ले जाएंगी दुख में। तुम विवाह करते हो एक सुंदर स्त्री से, लेकिन वह बीमार पड़ सकती है और उसका सौंदर्य मिट सकता है। चेचक का प्रकोप हो सकता है और चेहरा बिगड़ सकता है। तो क्या करोगे तुम? मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने एक बार कहा उससे, 'लगता है कि अब तुम मुझे प्रेम नहीं करते। क्या तुम्हें याद है, या क्या तुम भूल चुके हो कि मौलवी के सामने तुमने वायदा किया था कि तुम हमेशा मुझे प्यार करोगे, तुम हमेशा मेरा साथ दोगे सुख में और दुख में?' मुल्ला नसरुद्दीन कहने लगा, 'ही, मैंने वायदा किया था। मैंने बिलकुल किया था वायदा और वह खूब याद है मुझे : चाहे वह सुख की घड़ी हो या दुख की घड़ी हो, मैं साथ रहूंगा तुम्हारे। लेकिन मैंने कभी नहीं कहा था मौलवी से कि मैं तुम्हें प्रेम करूंगा वृद्धावस्था में। यह बात कभी नहीं थी उस वायदे का हिस्सा।' लेकिन वृद्धावस्था आ जाती है; चीजें बदलती हैं। एक सुंदर चेहरा असुंदर हो जाता है। एक सुखी आदमी दुखी हो जाता है। एक बहत कोमल व्यक्ति बहत कठोर हो जाता है। गनगनाहट तिरोहित हो जाती है और झगड़ालु वृत्ति प्रकट होती है। जीवन प्रवाह है और हर चीज बदलती है। कैसे तुम अपेक्षा कर सकते हो? तुम अपेक्षा करते हो, तो दुख आ बनता है। पतंजलि कहते हैं, 'परिवर्तन के कारण?. दुख घटित होता है। यदि जीवन पूरी तरह जड़ होता और कहीं कोई परिवर्तन नहीं होता, तुम प्रेम करते किसी लड़की से और वह लड़की हमेशा ही रहे सोलह साल की, हमेशा गुनगुनाती रहे, हमेशा खुश रहे और आनंदित रहे और तुम भी वैसे ही रहो, जड़ अस्तित्वनिस्संदेह तब तुम व्यक्ति न रहोगे, जीवन जीवन नहीं होगा। वह जड़ पत्थर होगा, पर कम से कम आशाएं - अपेक्षाएं पूरी हो जाएंगी। लेकिन एक कठिनाई होती है : इससे एक ऊब आ बनेगी, और वह निर्मित कर देगी दुख को। परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन तब ऊब आ बनेगी।

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