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बात पर : अहंकार को हटा दो और जीवन तुममें घटित होगा बहुत बड़े रूप में। लेकिन तुम तो चिपके रहते हो अहंकार से अहंकार से चिपकने का अर्थ है अंधेरे से दुख से चिपक जाना ।
ये
सूत्र सुंदर हैं, इन्हें समझने की कोशिश करना ।
विवेकपूर्ण व्यक्ति जानता है कि हर चीज कारण पिछले अनुभवों के कारण और उन के बीच आ बनते हैं?
दुख की ओर ले जाती है- परिवर्तन के कारण चिंता के द्वंवों के कारण जो तीन गुणों और मन की पांच वृत्तियों
जीवन दुख है जैसा कि तुम इसे जानते हो; जीवन आनंदमय है जैसा कि मैं इसे जानता हूं। तब तो हम जरूर अलग- अलग चीजों की बात कर रहे होंगे, क्योंकि जीवन तुम्हारे लिए दुख और मेरे लिए सुख 'कैसे हो सकता है? तो हम बात नहीं कर रहे हैं किसी एक ही चीज की। जब तुम बात करते हो जीवन की, तो तुम उस जीवन की बात करते हो जो बीज मात्र है - जीवन जिसकी केवल आशा ही है; स्वप्नों और कल्पनाओं का जीवन, वास्तविक, प्रामाणिक जीवन नहीं; तुम बात कर रहे होते हो उस जीवन की जो केवल आकांक्षा करता है लेकिन जानता कुछ नहीं, जो केवल ललकता है लेकिन पहुंचता कभी नहीं; वह जीवन जो निरंतर घुटन अनुभव कर रहा होता है, लेकिन सोचता है कि घुटन सुविधा है; वह जीवन जो एक यातना भरा नरक है, लेकिन सदा सोचता है कि इसी नरक में से कुछ घटने वाला है - स्वर्ग पैदा होने वाला है इस नरक में से।
कैसे स्वर्ग उत्पन्न हो सकता है नरक में से? कैसे आनंद उपज सकता है तुम्हारी पीड़ाओं से? नहीं, तुम्हारे पीड़ित जीवन से और और पीड़ाएं ही पैदा होंगी। एक बच्चा उतना दुखी नहीं होता, जितना कि कोई वृद्ध व्यक्ति होता है। होना तो ठीक उलटा चाहिए, क्योंकि वृद्ध ने तो जीवन इतना ज्यादा जी लिया होता है। वह पहुंच ही रहा होता है शिखर के निकट अनुभवों का शिखर, खिले हुए फूल। लेकिन वह कहीं से भी निकट नहीं होता इसके एकदम इसके विपरीत, जीवन चढ़ती हुई लहर नहीं रहा होता, वह नहीं पहुंचा है किसी स्वर्ग तक। बल्कि वह उतर गया है कहीं अधिक गहरे और गहरे नरक में। वृद्ध से तो ज्यादा स्वर्गीय जान पड़ता है कोई बालक । वृद्ध को तो बनना चाहिए एक पुराना वृक्ष, एक विशाल वृक्ष; लेकिन वह नहीं बनता। वह पहुंच चुका होता है नरक के ज्यादा अंधेरे क्षेत्रों में यह ऐसे होता है जैसे कि जीवन एक गिरती हुई घटना हो न कि चढ़ती हुई, जैसे कि तुम गिर रहे हो और और अंधेरे क्षेत्रों में, नहीं उठ रहे सूर्य की ओर।
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क्या घटता है वृद्ध को? एक बच्चा दुखी होता है, एक वृद्ध भी दुखी होता है। वे दोनों एक ही मार्ग पर होते हैं। बच्चे ने तो बस शुरू ही की है यात्रा और वृद्ध ने संचित कर लिया है सारी यात्रा के सारे दुखों को।