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तुम जीते हो एक बीज की भाति। कुछ कारण होते हैं जिनकी वजह से व्यक्ति बीज की भांति जीए चला जाता है। और निन्यानबे प्रतिशत लोग जीते हैं बीज की भांति। जरूर कोई बात होगी इसमें। बीज की भांति जीना आरामदेह लगता है। जीवन खतरनाक जान पड़ता है। बीज की भांति बने रहने से, आदमी ज्यादा सुरक्षित अनुभव करता है। उसके चारों ओर सुरक्षा होती है। बीज असुरक्षित नहीं होता है।
एक बार प्रस्फुटित होता है वह, तो वह बन जाता है असुरक्षित। उस पर आक्रमण किया जा सकता है, वह मारा जा सकता है -जानवर हैं, बच्चे हैं, इतने लोग मौजूद हैं। एक बार बीज पौधे के रूप में खिल जाता है, तो वह हो जाता है कवचहीन, असंरक्षित; खतरे शुरू हो जाते हैं।
जीवन एक बड़ा साहस है। बीज में रह कर, बीज में छिपे रह कर तुम सुरक्षित होते हो, बचाव में होते हो, कोई तुम्हें नहीं मारेगा। कैसे तुम्हें मारा जा सकता है यदि तुम जीवित ही न हो तो?- असंभव। केवल जब तुम जीवित होते हो, तभी तुम मारे जा सकते हो। जितने ज्यादा तुम जीवंत होते, उतने ज्यादा तुम असुरक्षित होते। जितने ज्यादा तुम जीवंत होते, उतने ज्यादा खतरे होते तुम्हारे आसपास। एक संपूर्णतया जीवंत व्यक्ति बड़े से बड़े खतरों में जीता है। इसीलिए लोग बीज की भांति जीना चाहते हैं-संरक्षित, सुरक्षित।
ध्यान रखना, जीवन का असली स्वभाव ही है असुरक्षा। तुम सुरक्षित जीवन नहीं पा सकते, तुम पा सकते केवल सुरक्षित मृत्यु। सारे बीमे होते हैं मृत्यु के लिए। जीवन का कोई बीमा नहीं हो सकता। सारी सुनिश्चितता है बचाव के लिए, सुरक्षा के लिए, बंद रहने के लिए। जीवन खतरनाक होता है, लाखों खतरे होते हैं आसपास। इसलिए निन्यानबे प्रतिशत लोग बीज बने रहने के पक्ष में ही निर्णय लेते हैं। लेकिन क्या बचा रहे होते हो तुम? –बचाने को कुछ है नहीं। क्या सुरक्षित रख रहे हो तुम? -सुरक्षित रखने को अंतत: कुछ भी नहीं। बीज तो उतना ही मत है जितने कि रास्ते के कंकड़ -पत्थर। और यदि वह बीज की भांति ही बना रहता है तो दुख आएगा ही। दुख आएगा क्योंकि इस तरह का होने में उसकी अर्थपूर्णता न थी। उसकी नियति बीज होने की न थी, बल्कि उससे बाहर आ जाने की थी। पक्षी को छोड़ना पड़ता है अंडे के खोल को अपरिसीम के लिए, खतरनाक आकाश के लिए जहां कि हर चीज संभव होती है।
और उन तमाम संभावनाओं सहित, मृत्यु भी होती है वहां। जीवन जोखम उठाता है मृत्यु का। मृत्यु जीवन के विपरीत नहीं है, मृत्यु ही वह पृष्ठभूमि है जिसमें जीवन खिलता है। मृत्यु जीवन के विपरीत नहीं। वह तो है ब्लैकबोर्ड की भांति ही जिस पर तुम लिखते हो सफेद खड़िया से। तुम लिख सकते हो सफेद दीवार पर, लेकिन तब शब्द दिखायी न पड़ेंगे। ब्लैकबोर्ड पर, जो कुछ भी तुम सफेद से लिखते हो, वह दिखायी पड़ता है। मृत्यु है ब्लैकबोर्ड की भांति : जीवन की सफेद रेखाएं दिखायी पड़ती हैं उस पर, वह विपरीत नहीं; वही तो है पृष्ठभूमि।