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होती जाती हैं समस्या से भरी हुई; तुम और पहेली बना लेते हो सुलझाने को और हर चीज उलझ जाती है, एक झंझट बन जाती है।
आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली सीधी-सादी जिंदगी जीयो, बिना पागल इच्छाओं वाली जिंदगी। तुम्हें आवश्यकता है भोजन की, तुम्हें आवश्यकता है कपड़ों की, तुम्हें आवश्यकता है एक छत कीखत्म हो गई बात। तुम्हें कोई चाहिए प्रेम करने को, तुम्हें कोई चाहिए जो तुम्हें प्रेम करे। प्रेम, भोजन, कमरा-सीधी-सहज बात; लेकिन तुम खड़ी कर लेते हो लाखों-लाखों इच्छाएं। यदि तुम्हें रॉल्सरॉयस चाहिए तो कठिनाइयां उठ खड़ी होती हैं; यदि तुम्हें महल चाहिए या तुम संतुष्ट नहीं साधारण स्त्रियों से, तुम्हें चाहिए विश्व सुंदरी-और तुम्हारी सारी विश्व-सुंदरियां करीब-करीब मुरदा होती हैंतो तुम चाहते हो असंभव चीजें। तो तुम आगे और आगे की सोचते जाते हो। और तुम्हें स्थगित करते जाना होता है 'किसी दिन जब मेरे पास महल होगा तो मैं शांति से बैलूंगा।' लेकिन इस बीच तो जीवन बहा जा रहा है तुम्हारे हाथों से। यदि कभी ऐसा हो जाए कि तुम पा लो तुम्हारा महल तो तुम भूल चुके होंगे शांतिपूर्वक बैठना। क्योंकि महल के पीछे दौड़ते-भागते, तुम बिलकुल भूल ही जाओगे कि कैसे बैठा जाता है।
ऐसा घटता है सभी महत्वाकांक्षी लोगों को। वे दौड़ते जाते हैं, तब दौड़ना उनके जीवन का ही एक ढंग बन जाता है। एक घड़ी आती है, जब वे पा लेते हैं, लेकिन अब फिर वे रुक नहीं सकते। तुम इसे बखूबी जानते हो कि यदि सारा दिन तुम सोचते ही जाओ, तो तुम रुक नहीं सकते।
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन घर लौटा कुछ करने और उसे न भूलने की बात सोच कर। उसने अपने कपड़ों में एक गांठ लगा दी जिससे कि उसे याद रहे। फिर जब वह घर आया, वह बड़ा बेचैन था क्योंकि वह भूल चुका था। 'गाठ वहा मौजूद है, लेकिन किसलिए?' उसने कोशिश की सोचने की। उसकी पत्नी ने बार-बार कहां, ' अब तुम सो जाओ और कल सुबह हम देख लेंगे।' फिर भी वह कहने लगा, 'नहीं, कोई बहुत ही जरूरी बात है। वह जरूरी थी और मैंने सोच लिया था कि उसे आज रात ही करना है। किसी भी कीमत पर मैं उसकी उपेक्षा नहीं कर सकता, इसलिए तुम सो जाओ।' आधी रात जब घड़ी ने दो का घंटा बजाया, तो उसे याद आया। उसने तय किया था कि जल्दी सो जाना है। यही बात याद दिलाने के लिए थी वह गांठ।
यही कुछ घट रहा है सभी महत्वाकांक्षी लोगों को। वे इतनी ज्यादा इच्छाएं बना लेते हैं कि जब तक वे लक्ष्य प्राप्त करते हैं, तब तक वे बिलकुल भूल ही जाते हैं कि किस बात को पाना चाह रहे थे वे। पहली बात, वे इतनी सारी बातो की आकांक्षा कर ही किसलिए रहे थे? अब प्राप्ति हो गई है उन्हें और भूल गए हैं वे। यदि उन्हें यह भी याद रहा हो कि वे शांत हो जाना चाहते थे, विश्रांति पाना चाहते थे, तो उनके जीवन का सारा ढांचा-ढर्रा और सारी बद्धताएं उन्हें विश्रांति पाने न देंगे; उन्हें शांति से बैठने न देंगे और आनंदित होने न देंगे। जब तुम जीवन भर महत्वाकाक्षाओं सहित दौड़े होते हो, तो