________________
क्योंकि तुम्हारे विद्वान बिलकुल तुम्हारे जैसे ही मूढ़ हैं। पंडितों ने कुछ नहीं जाना। वस्तुत: उन्होंने चीजें स्मरण कर ली हैं। बड़े विद्वान हैं, पंडित हैं, वे जीवन के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन वे जीवन को नहीं जानते। वे सदा किसी चीज के आस-पास को, घेरे को ही जानते हैं। वे आसपास ही चक्कर काटते रहते हैं-केंद्र में कभी नहीं उतरते। वे उतने ही भयभीत होते हैं-शायद तुमसे भी ज्यादा-क्योंकि उन्होंने अपने जीवन शब्दों में व्यर्थ गंवाए हैं। शब्द तो बुदबुदे मात्र हैं। उन्होंने बहुत शान इकट्ठा कर लिया है, लेकिन जीवन के मुकाबले शान की क्या हस्ती?
तुम प्रेम के विषय में बहुत-सी बातें जान सकते हो बिना प्रेम को जाने हुए। वस्तुत: यदि तुम प्रेम को जानते हो, तो प्रेम के विषय में जानने की क्या जरूरत है? तुम परमात्मा के विषय में बहुत-सी बातें जान सकते हो बिना परमात्मा को जाने हए। वास्तव में, यदि तुम परमात्मा को जानते हो, तो परमात्मा के विषय में जानने की क्या जरूरत है?–वह मूढ़ता होगी, नासमझी। सदा याद रखना कि किसी विषय में जानना कोई जानना नहीं होता। किसी विषय के बारे में जानना, केंद्र को कभी भी न छूते हुए, मात्र चक्कर में ही घूमते जाना है।
पतंजलि कहते हैं विद्वान भी, जो शास्त्र-निपुण हैं, तत्वज्ञान के ज्ञाता हैं, बहस कर सकते है उनके सारे जीवन भर वाद-विवाद कर सकते है, वे बातें ही बातें किए जा सकते हैं, और लाखों चीजों के बारे में तर्क कर सकते हैं, लेकिन इस बीच जीवन बहा जा रहा है। जीवन की प्याली का तो स्वाद ही नहीं लिया उन्होंने। वे नहीं जानते जीवन क्या है। वे शब्दों में जीए हैं, भाषागत खेलों में। वे भी भयभीत होंगे। तो ध्यान रहे, वेद और बाइबिल मदद न देंगे। जहां तक जीवन का संबंध है, ज्ञान किसी काम का नहीं। तुम चाहे बड़े वैज्ञानिक हो जाओ या बड़े दार्शनिक या कि बड़े गणितज्ञ, लेकिन उसका यह अर्थ नहीं कि तुम जीवन को जानते हो। जीवन को जानना एक संपूर्णतया अलग आयाम है।
जीवन को जानने का अर्थ है : उसे जीना, निर्भय हो कर असुरक्षाओं में जीना क्योंकि जीवन एक असुरक्षित घटना है, अज्ञात में सरकना क्योंकि जीवन हर क्षण अज्ञात है, वह सदा बदल रहा है, और नया हो रहा है, अज्ञात के यात्री हो जाओ और जीवन के साथ बढ़ना जहां कहीं वह ले जाए; एक घुमक्कड़ हो जाना।
मेरे देखे संन्यास का यही अर्थ है ज्ञात को और शात की सुविधाओं को छोड़ने के लिए सदा तैयार रहना और अज्ञात में बढ़ते जाना। निस्संदेह, अज्ञात के साथ असुरक्षाएं लगी हैं, तकलीफें हैं, असुविधाएं हैं। अज्ञात में सरकने का अर्थ है खतरे में सरकना। जीवन एक खतरा है। वह खतरों और बाधाओं से भरा हुआ है। इसी कारण, लोग स्वयं को बंद करने लगते हैं। वे कैदी में, कोठरियों में जीते -अंधेरे में, लेकिन फिर भी सुविधापूर्ण। इससे पहले कि मृत्यु आए, वे मर ही गए होते हैं।
स्मरण रखना, यदि तुम सुविधा को चुनते हो, यदि तुम सुरक्षा को चुनते हो, यदि परिचित को चुनते हो, तो तुम जीवन को न चुनोगे। जीवन एक अज्ञात घटना है। तुम जी सकते हो उसे, लेकिन तुम उसे