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ज्यादा तुम उस पर ध्यान देते हो, उतना ज्यादा तुम पोषित करते हो पागलपन को सारा मठ बना 'रहता है, उदासीन, तटस्थ-जैसे कि कोई अंदर आया ही न हो।
उदासीनता एक विधि है, क्योंकि एक पागल आदमी को सचमुच ही चाहिए होता है ज्यादा ध्यान। शायद ऐसा हो कि वह मात्र अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने को ही पागल हो गया हो। इसलिए मनोविश्लेषण कोई ज्यादा मदद नहीं दे सकता। क्योंकि मनोविश्लेषक इतना ज्यादा ध्यान देते हैं पागल पर, न्यूरोटिक पर, साइकोटिक पर, कि वह उस ध्यान पर पोषित होने लगता है : कई वर्षों से बराबर कोई ध्यान दे रहा होता है तुम पर।
तुमने ध्यान दिया होगा कि न्यूरोटिक लोग सदा दूसरों को बाध्य करते हैं अपनी ओर ध्यान देने के लिए। यदि वे ध्यान पा सकते हों तो वे कुछ भी करेंगे। झेन मठ में वे कोई ध्यान नहीं देते, वे उदासीन बने रहते हैं। कोई परवाह नहीं करता, कोई नहीं सोचता कि वह पागल है, क्योंकि यदि सारा समूह सोचे कि वह पागल है तो वह सोचना ऐसी तरंगें निर्मित कर देता है जो कि पागल को पागल बने रहने देने में मदद करती हैं। तीन सप्ताह, चार सप्ताह के लिए पागल आदमी को उसके अपने साथ रहने दिया जाता है। आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जाता; कोई विशिष्ट ध्यान नहीं अलगाव कायम किया जाता है। कोई नहीं सोचता कि वह पागल है। और तीन या चार सप्ताह के भीतर ही, वह पागल, अपने साथ रहते हुए ही, धीरे-धीरे बेहतर होता चला जाता है। पागलपन घटता जाता है।
या है। और वे बिलकुल
अभी भी झेन मठों में वे यही कुछ करते हैं। पश्चिम के मनोवैज्ञानिक इस तथ्य के प्रति सचेत हो गए हैं। बहुत से लोग गए हैं जापान यह अध्ययन करने के लिए कि होता क्या है। और वे बिल हैरान हो गए। वे वर्षों तक कार्य किए हैं और कुछ घटित नहीं होता है, और झेन मठ में बिना कुछ किए ही पागल आदमी को उसके स्वयं के पास छोड़ देने से चीजें ठीक होने लगती हैं। पागल आदमी को चाहिए पृथकता। उन्हें चाहिए विश्राम, उन्हें चाहिए अलगाव, उपेक्षा, और वे लहरें, वे तनाव जो उनके मन में उठ रहे थे, वे एकदम विलीन हो जाते हैं। चौथे सप्ताह बाद वह आदमी तैयार हो जाता है मठ छोड़ देने के लिए। वह धन्यवाद देता है वहां के लोगों को, मठ के अधिकारियों को और दूसरों को, और चला जाता है। वह पूरी तरह ठीक होता है।
पूरब में इस कारण, इन विधियों के कारण, पहली प्रकार का मनोविज्ञान कभी विकसित नहीं हुआ था। और जब तक पहली प्रकार का मनोविज्ञान मौजूद न हो, दूसरी प्रकार का असंभव हो जाता है। रुग्ण मन को समझ लेना है उसके विस्तार में। पागल आदमी को ठीक होने में मदद देना एक बात है पागलपन का मनोविज्ञान निर्मित करना दूसरी बात है। वैज्ञानिक पहुंच की आवश्यकता है, ब्यौरे भरे विश्लेषण चाहिए। पश्चिम में उन्होंने कियो है ऐसा, पहले प्रकार का मनोविज्ञान वहां है। फ्रायड, का, एडलर और दूसरे कइयों ने रुग्ण आदमियों के लिए मनोविज्ञान निर्मित किया है। शायद वे उन लोगों की जो कि मुसीबत में होते हैं, बहुत ज्यादा मदद नहीं कर सकते, लेकिन उन्होंने एक और जरूरत पूरी