________________
-
तक सारे सातों प्रकार जाने नहीं जाते, चरण - चरण पर्त -दर-पर्त एकदम शुरू से ही शुरू से लेकर आखिर तक ही अध्ययन नहीं किए जाते, तब तक मनोविज्ञान प्रतिपादित नहीं किया जा सकता है। वह पहले कभी अस्तित्व न रखता था, लेकिन वह अस्तित्व रख सकता है भविष्य में।
तीसरा प्रश्न:
-
जैसा कि आपने कहा मेरा जीवन एक दुख है लेकिन आपके पास आने के बाद से दुख चला गया है। हालांकि मुझे मालूम है कि मेरा जीवन अभी भी आनंदमय नहीं है एक संतुष्टि चली आई है हर उस चीज के प्रति जो कि मुझे घटित होती है इस बात ने ध्यान करने की खोज करने की ही आकांक्षा में कमी कर दी है। मैं साथ बहे जाने में खुश हूं बस क्या मैं एकदम सुस्त हूं
यह घड़ी आती है प्रत्येक खोजी को, जब नकारात्मक अब नहीं बच रहा होता है, लेकिन विधायक
भी नहीं आया होता, जब पीड़ा जा चुकी होती है, लेकिन आनंद घटित नहीं हुआ होता, जब रात बाकी नहीं रही, लेकिन सूर्योदय तो नहीं हुआ। यह एक अच्छा लक्षण है कि तुम विकसित हो रहे हो। और फिर, तुरंत ही, व्यक्ति विश्रांति अनुभव करने लगता है, बहने लगता है, और हर चीज जैसे घटती है वह बहुत सुंदर होती है। मन कहता है, क्यों फिक्र करनी? जरा भी ध्यान क्यों करना? यदि तुम सुनते हो मन की, तो जल्दी ही रात वापस लौट आएगी, दुख का प्रवेश हो जाएगा। मत सुनो मन की। तुम निरंतर ध्यान करना लेकिन अब जरा अलग दृष्टिकोण सहित ऐसे ध्यान करो जैसे कि तुम उसमें बह रहे हो। बहुत ज्यादा प्रयास मत करना इस बात के लिए। इसी की तो जरूरत होती है। ध्यान करो प्रयास - विहीनता से पर ध्यान करो। सुस्त मत पड़ना । सुस्ती के साथ पुरानी बात फिर से वापस चली आयेगी, क्योंकि आनंद अभी भी घटित नहीं हुआ है। एक बार आनंद घट जाता है – जब तुम संपूर्णतया परितृप्त अनुभव करते हो, जब तुम उस स्थल तक आ पहुंचते हो, जहां तुम संतुष्टि के बारे में भी भूल जाते हो, वह इतनी संपूर्ण होती है जाता है अपने से ही।
7
केवल तभी ध्यान गिराया जा सकता है। वह गिर
—
दो स्थलों पर गिराने का विचार आ बनता है।
लिए प्रश्न करने वाले
पहला स्थल यह होता है, जिसके ने पूछा है जब अंधकार मिट जाता है, दुख नहीं बचता, और तुम बहुत अच्छा
अच्छा अनुभव करते हो। यह बात तो दुख का अभाव मात्र होती है। यदि मन जो कि दुख में पड़ा रहा, वह गैर - दुखी हो जाता है, तो यह बात करीब करीब सुख जैसी जान पड़ती है, यह करीब-करीब आनंदपूर्णता जैसी दिखती है। आभास से धोखा मत खा जाना। अभी भी बहुत कुछ करना है - लेकिन अब इसे जरा
—-