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मा स्वप्न देखती है सफेद हाथी का। यह एक प्रतीक है, किसी बहुत दुर्लभ चीज का प्रतीक-क्योंकि सफेद हाथी भारत की दुर्लभतम चीजों में से एक चीज है, करीब-करीब असंभव है उसे ढूंढ निकालना। एक दुर्लभ प्राणी होता है गर्भ में और सफेद हाथी का प्रतीक मात्र एक संकेत है। और स्वप्नों की एक शृंखला पीछे -पीछे चली आती है।
जब बुद्ध कहते हैं कि जन्म एक पीड़ा है, तो वह एक अंतस अनुभूति की दृष्टि है। महावीर कहते हैं कि जन्म दुख है, वह एक पीड़ा है, वह एक चोट है। महावीर और बुद्ध दोनों कहते हैं कि उत्पन्न होना और मरना, यह दो सब से बड़े दुख हैं। लैंग और फ्रायड की बातों से इनकी बात में ज्यादा बल है। लेकिन फ्रायड की दृष्टि इसके साथ मेल खाती है, और यही मेरा अपना
जाता हजार चहा मरा अपना अनभव भी है।
मां के गर्भ में नौ महीने सब से ज्यादा आरामदेह होते हैं। निस्संदेह, कुछ दूसरे प्रसंग आते हैं, लेकिन अपवाद ही होते हैं वे। अन्यथा, वे नौ महीने तो बिना किसी खबर के होते हैं, क्योंकि खबर तो सदा बुरी खबर ही होती है। लगभग कुछ नहीं घटता है। तुम केबल बहा करते हो अदभुत आनंद-उल्लास में। लेकिन जन्म तो एक पीड़ा है, वह बहुत दर्द भरा होता है। वह बिलकुल ऐसे होता है जैसे कि तुम किसी वृक्ष को धरती में से खींचो –तो कैसा अनुभव करता है वृक्ष?
अब हमारे पास उपकरण हैं जांच करने के कि वृक्ष कैसा अनुभव करता है जब उखाड़ा जाता है। एक बच्चा इसी तरह अनुभव करता है, जब वह मां से बाहर आता है। मां धरती होती है और बच्चे की जड़ें मां में थीं अभी तक तो, अब वह उखड़ गया। पीड़ा बहुत बड़ी है। यदि तुम विश्वास कर सको मुझ पर, मैं कहता हूं कि यह पीड़ा ज्यादा बड़ी है मृत्यु से। मृत्यु दो नंबर पर आती है, जन्म का नंबर पहला है। और ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि जन्म संभव बनाता है मृत्यु को। वस्तुत: वह दुख जो शुरू होता है जन्म के साथ, अत पाता है मृत्यु पर। जन्म प्रारंभ है दुख का, मृत्यु अंत है। जन्म को होना पड़ता है ज्यादा दर्द भरा-वह है ही। और नौ महीनों की संपूर्ण विश्रांति के बाद -कोई चिंता नहीं ' कुछ करने को नहीं, उन नौ महीनों के बाद वह एक इतना अचानक झटका होता है बाहर फेंके जाने का, कि फिर कभी इतना अचानक झटका न लगेगा स्नायुतंत्र को, कभी भी नहीं! हर दूसरा झटका छोटा ही है।
यदि तुम दिवालिए हो जाते हो तो तुम्हें धक्का लगेगा, लेकिन इसका कोई मुकाबला नहीं जन्म की चोट के साथ। तुम्हारी पत्नी मर जाती है तुम दुखी होते, तुम चीखते, तुम रोते। लेकिन केवल समय की जरूरत होती है। घाव भर जाता है और तुम किसी दूसरी स्त्री के पीछे पड़े होते हो! तुम्हारा बच्चा मर जाता है, तुम गहरी चोट अनुभव करते हो, उस चोट का कुछ न कुछ सदा मौजूद रहेगा तुम्हारे प्राणों में। लेकिन जन्म की चोट की तुलना में तो वह कुछ भी नहीं है, जब कि तुम उखड़ गए होते हो जमीन से। तुम इस उखडाव में जागरूक रह सकते हो, और केवल तभी वह अर्थपूर्ण होगा जिसकी मैं बात कर रहा हूं। इस बात का खंडन किया जा सकता है बाहरी खोजों द्वारा। मेरे देखे यह बात अप्रासंगिक है, क्योंकि जो कुछ मैं कह रहा हूं, मैं कह रहा हूं मेरे अपने जन्म के बारे में। और यदि