Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 373
________________ तुम सचमुच ही जानना चाहते हो, तो स्वयं को तैयार कर लो और- और ज्यादा जागरूक होने के लिए ताकि जब तुम इस बार मरो, तो तुम मरो पूरी जागरूकता सहित। तब तुम अपने आप ही पूरी जागरूकता लिए पैदा होओगे। यदि तुम बेहोशी में मरते हो तो तुम बेहोश हुए ही पैदा होते हो। जो कुछ घटता है मृत्यु में वही घटता है जन्म में, क्योंकि मृत्यु और कुछ नहीं सिवाय इस ओर की मृत्यु के –उस ओर तो वह जन्म है। यह वही द्वार है। यदि तुम द्वार में प्रवेश करते हो होशपूर्वक, तो तुम होशपूर्वक ही द्वार से बाहर आओगे, मृत्यु द्वार के इस ओर का भाग है, जन्म द्वार के उस ओर का भाग है। पांचवां प्रश्न: अभी-अभी पश्चिम ने बहुत-सी विधियां खोज निकाली हैं स्रोत तक लौटने की। इन विधियों में एक बात समान जान पड़ती है वे स्वीकार करते हैं कि कोई व्यक्ति स्वयं ही इन संघातक अनुभवों तक नहीं लौट सकता है। मन बहुत ही घनचक्करी होता है अहंकार बहुत जटिल है इसलिए विश्लेषण खोज लिए गए हैं. जिनमें से कुछ नाम है- प्राइमल- थैरेपी फिशर- हाफमैन और आरिका के कर्मों को साफ कर देने वाले उपकरण। आधारभूत मुख्य बात यह जान पड़ती है कि आदमी अकेला ही इस यात्रा पर नहीं चलेगा; दूसरे की जरूरत है- समूह की सक्रिय ऊर्जा या कोई तटस्थ मार्गदर्शक क्या अतीत के बारे में इतना आत्मसजग हो जाना जरूरी होता है? क्या यह स्वयं घटित नहीं हो जाता जैसे-जैसे आदमी ध्यान में ज्यादा गहरे उतरता है? पहली बात; अतीत में जाने की बिलकुल कोई जरूरत नहीं है। यदि तुम सचमुच ही ध्यान करते हो, तो हर चीज अपने आप ही घटित हो जाती है। लेकिन यदि तुम्हारा ध्यान ठीक से नहीं चल रहा होता, तब अतीत में उतर जाना एक बड़ी मदद बन सकता है। इसलिए अतीत में चले जाना कोई परम आवश्यकता नहीं है। यदि तुम्हारा ध्यान ठीक जम रहा है, तो भूल जाना इस बारे में। यदि तुम्हारा ध्यान ठीक नहीं चल रहा है केवल तभी यह बात महत्वपूर्ण हो जाती है। तब यह एक बड़ी मदद दे सकती है। तब यह सुलझा देगी ध्यान की कठिनाइयों को, लेकिन यह एक दोयम, एक पूरक घटना होती है। प्रति-प्रसव, अतीत में जाना एक परिपूरक विधि है ध्यान की। पहले तो करना ध्यान, यदि वह काम कर जाए, तो भूल जाना अतीत को, अतीत में जाने की कोई जरूरत नहीं। यदि तुम अनुभव करते हो

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