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बाहर आने में, या फिर खोजियों के समूह की, यदि कोई सदगुरु उपलब्ध न हो तो, ताकि समूह के लोग एक-दूसरे की मदद कर सकें।
गुरजिएफ कहा करता था, 'यह ऐसा है जैसे कि तुम जंगल में हो जंगली जानवरों से डरे हुए, लेकिन तुम्हारे साथ कोई समूह है। दस लोग मौजूद हैं, तो तुम एक चीज कर सकते जब नौ सोए होते हैं, एक जागता रहता है। यदि जंगली जानवरों से, चोरों या डाकुओं से कोई खतरा होता है, तो वह जगा देता है दूसरों को। यदि वह अनुभव करता है कि वह सो रहा है, तो वह जगा देता है दूसरों को। लेकिन एक का होश कायम रहता है-वही बात बन जाती है बचाव। यदि कोई सद्गुरु उपलब्ध होता है, यदि बुद्ध उपलब्ध होते हैं तब तो समूह में कार्य करने की कोई जरूरत ही नहीं होती। क्योंकि वह जागता रहता है चौबीसों घंटे। यदि वह मौजूद न हो, तो दूसरी संभावना है –समूह में कार्य करने की। कई बार कोई आ पहुंचता है हल्की –सी जागरूकता तक, वह मदद कर सकता है। जिस समय वह सोने लगता है, तो कोई दूसरा आ पहुंचा होता है कुछ जागरण तक, वह मदद करता है, और समूह मदद करता है।
यह ऐसा होता है जैसे कि तुम कैद में हो, तो अकेले तुम्हारे लिए कठिन होगा बाहर आना क्योंकि भारी पहरा लगा हुआ होता है। लेकिन यदि सारे कैदी इकट्ठे हो जाते हैं और बाहर आने का इकट्ठा प्रयास करते हैं, तो पहरेदार शायद पर्याप्त न हो पाएं। लेकिन यदि तुम किसी उस व्यक्ति को जानते हो जो बाहर है, कैद से बाहर है और कोई मदद कर सकता है, तो सामूहिक प्रयास की कोई जरूरत नहीं है। वह कोई जो बाहर है, स्थितियां निर्मित कर सकता है : वह फेंक सकता है सीडी; वह पहरेदार को रिश्वत दे सकता है; वह पहरेदार को बेहोश कर सकता है; वह बाहर रह कर कुछ कर सकता है, क्योंकि वह मुक्त होता है। वह तरीके ढूंढ सकता है जिससे कि तुम बाहर आ सको।
एक सद्गुरु उस व्यक्ति की भांति होता है जो कैद से बाहर है, उसके पास कुछ करने के लिए ज्यादा स्वतंत्रता होती है। बहुत सारी संभावनाएं हैं और उसके लिए सभी खुली हैं क्योंकि वह मुक्त है। यदि तुम्हारा उस गुरु के साथ कोई संपर्क नहीं जो कि मुक्त है, कैद के बाहर है, तब कैदियों के लिए एकमात्र संभावना यही होती है -समूह निर्मित करने की।
इसीलिए पश्चिम में बहुत प्रकार के समूह कार्य कर रहे हैं आरिका के, गुरजिएफ के, और कइयों के समूह। सामूहिक चेतना पश्चिम में और ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है। यह अच्छा है, यह बेहतर है महर्षि महेश योगी से, यह बेहतर है बालयोगेश्वर से, क्योंकि ये गुरु नहीं हैं। समूह में कार्य करना बेहतर है, क्योंकि जो आदमी कहता है कि वह बाहर हो चुका, वह बाहर नहीं होता है; वह भी भीतर होता है। जो आदमी कहता है कि उसके संपर्क बाहर हैं, उसके कोई संपर्क नहीं होते हैं बाहर। वह तो बस तुम्हें धोखा दे रहा होता है। पश्चिम में केवल एक ही व्यक्ति है पूरब का, और वह है कृष्णमूर्ति। यदि तुम कृष्णमूर्ति के साथ हो सकते हो तो यह बात मदद दे सकती है, लेकिन कठिन है उनके साथ होना। वे लोगों की मदद करने की कोशिश ऐसे अप्रत्यक्ष रूप से करते रहे हैं कि जिन लोगों को मदद