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अलग ढंग से करना है। बस, बात इतनी ही है। अब ध्यान बहुत शाति से, चैन से करना, तनाव मत लाना, बहना-लेकिन करना जारी रखना, क्योंकि अभी और बहुत कुछ घटने को है। यात्रा की समाप्ति नहीं हुई है। शायद तुम उस जगह आ गए हो जहां तुम आराम कर सकते हो वृक्ष के नीचे और छांव शीतल है, लेकिन भूलना मत कि यह बात केवल एक रात भर का पड़ाव हो सकती है। सुबह तुम्हें फिर से चल देना है। जब तक कि तुम पूरी तरह मिट नहीं जाते, यात्रा को जारी रखना होता है। लेकिन अब बदल देना गुणवत्ता को, बहते रहना। प्रयासरहित होकर बढ़ना ध्यान में।
तो तुम जानते हो न अंतर? कोई तैरता है नदी में, प्रयास मौजूद होता, लेकिन फिर वह मात्र बहता है, अपनी पीठ के बल लेट जाता, नदी में रहता, लेकिन अब और तैरना नहीं बच रहा। बहती हुई नदी उसे धारा के संग लिए चलती है और वह बहता जाता है सागर की ओर। आरंभ में व्यक्ति का ध्यान तैरना होता है, क्योंकि मन के द्वारा निर्मित हुई बहुत सारी रुकावटें होती हैं, तुम्हें उनसे जूझना पड़ता है। दूसरे चरण में तुम्हें बहना होता है नदी के साथ। तीसरे चरण में तुम्हें बन ही जाना होता है नदी-तब कोई प्रश्न बचा नहीं रहता। तब तुम ध्यान करना गिरा सकते हो, लेकिन गिरा देने का सवाल नहीं बचता, वह गिर जाता है अपने आप ही। ध्यान जब पूरा होता है तो अपने से ही गिर जाता है। तुम्हें उसके लिए चिंता करने की जरूरत नहीं। जब वह संपूर्ण होता है तो वह गिर जाता है, बिलकुल ऐसे जैसे कि कोई पका फल गिर जाता है धरती पर।
लेकिन सुस्त मत बनना। मन तुम्हारे साथ चालाकियां चल सकता है और जो कुछ तुमने पाया है यह उसे नष्ट कर सकता है। बहुत ज्यादा प्रयास से थोड़ा –सा तुम पाते हो, और मन तुम्हें धोखा दे सकता है और कह सकता है कि अब कोई जरूरत नहीं। तुम इतना सुख अनुभव कर रहे हो - अनुभव करो सुख-लेकिन तुम इतना सुख अनुभव कर रहे होते ध्यान के कारण। यदि तुम ध्यान को गिरा देते हो तो तुरंत ही वह सुख तिरोहित हो जाएगा जिसे कि तुम अनुभव कर रहे होते हो। और तब तुम फिर से दुख में जा पड़ोगे।
चौथा प्रश्न:
लैग के अनुसार गर्भधारण के बाद के पहले नौ महीने आवश्यक रूप से ही आनंदपूर्ण नहीं होते और जैनोव की खोजें फ्रायड के जन्म- वेदना के सिद्धांत की पुष्टि नहीं करती कृपया क्या आप इसके बारे में थोड़ा और कुछ बताएंगे?