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लिए। एक बार स्वाद मिल जाए तो गर्जना फूट पड़ेगी। उस विस्फोट में बकरी तिरोहित हो जाएगी और बुद्ध उत्पन्न होंगे। तो तुम्हें इसमें चिंता करने की जरूरत नहीं कि मुझे अध्ययन करने के लिए इतने सारे बुद्ध कहां मिलेंगे! मैं निर्मित करूंगा उन्हें ।
दूसरा प्रश्न :
बुद्धों के मनोविज्ञान से आपका क्या अर्थ है? पूरब में हजारों बुद्ध हुए हैं क्या उन्होंने बुद्धों का मनोविज्ञान निर्मित नहीं किया? क्या कपिल कणाद बादरायण पतंजलि इत्यादि जैसे संतों ने तीसरे मनोविज्ञान को प्रतिष्ठित नहीं किया?
नहीं, अभी तक तो नहीं। बहुत-सी समस्याएं हैं। तीसरे मनोविज्ञान की स्थापना करने के लिए
पहले दो जरूरतें पूरी करनी पड़ती हैं। यदि तुम तिमंजला मकान बनाते हो तो पहले दो मंजिलें पूरी बनानी होती हैं, और केवल तभी तीसरी बनाई जा सकती है।
अतीत में, रुग्ण आदमी के लिए मनोविज्ञान का कभी अस्तित्व नहीं रहा, पहले प्रकार के मनोविज्ञान का कभी अस्तित्व न था। किसी ने परवाह नहीं की मानसिक रोग के क्षेत्र में प्रवेश करने की विशेष कर पूरब में तो ऐसा नहीं हुआ। किसी ने परवाह नहीं की। क्योंकि रोग से छुटकारा मिल सकता था उसमें जाए बिना उसका विश्लेषण करने की कोई जरूरत न थी रुग्ण मन में यात्रा करने की कोई जरूरत न थी, इस बारे में कुछ भी करने की जरूरत न थी कुछ विशेष विधियां अस्तित्व रखती थीं, अभी भी वे विधियां अस्तित्व रखती हैं। तुम उसे एकदम अलग कर सकते थे।
उदाहरण के लिए, जापान में जब कोई आदमी पागल होता है, कोई न्यूरोटिक होता है, वे उसे ले जाते हैं झेन मठ में, वे उसे ले जाते हैं नगर के धार्मिक व्यक्तियों के पास। यह सर्वाधिक प्राचीन तरीकों में से एक तरीका है उसे ले जाते हैं धार्मिक पुरुष के पास और क्या किया जाता है मठ में? कुछ नहीं। वस्तुत: कुछ नहीं किया जाता है। जब कोई पागल आदमी लाया जाता है मठ में, तो वे विश्लेषण करने की, निदान करने की फिक्र नहीं लेते। वे इस बारे में सोचने की चिंता नहीं करते कि यह किस प्रकार का रोग है। इसकी कोई जरूरत नहीं होती, क्योंकि रोग हटाया जा सकता है। वे पागल आदमी को मठ से दूर किसी अलग कमरे में रख छोड़ते हैं एक कोने में, कहीं पीछे। उसकी आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं : भोजन दिया जाता है और जो कुछ उसे चाहिए, वह दिया जाता है, लेकिन कोई उसके विषय में बात नहीं करता, कोई उसके पागलपन पर ध्यान नहीं देता। पूरब जानता है कि जितना