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पहला प्रश्न:
आपने कहा कि आप तीसरे प्रकार का मनोविज्ञान विकसित करने का प्रयत्न कर रहे बुद्धों का मनोविज्ञान; लेकिन अध्ययन करने के लिए आपको बुद्ध मिलेंगे कहां?
शुरुआत करने को, एक तो यहां मौजूद ही है, देर
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• अबेर वह तुममें से बहुतों को बुद्ध बना देगा।
यदि एक बुद्ध होता है, तो बहुत से तुरंत ही संभव हो जाते हैं। क्योंकि वह एक बुद्ध कार्य कर सकता है कैटेलिटिक एजेंट, प्रेरक – शक्ति के रूप में। ऐसा नहीं कि वह कुछ करेगा, लेकिन क्योंकि वह मौजूद होता, इसी कारण चीजें अपने से ही होने लगती है। यह अर्थ है कैटेलिटिक एजेंट, प्रेरक शक्ति का देर अबेर, तुममें से बहुत सारे लोग बुद्ध हो जाएंगे, क्योंकि हर कोई मौलिक रूप से बुद्ध ही होता है। इसे पहचानने में कितनी देर लगा सकते हो तुम? कितनी देर तक स्थगित कर सकते हो इसे? कठिन बात है तुम अपनी पूरी कोशिश करोगे स्थगित करने की देर करने की, लाखों कठिनाइयां खड़ी करने की, लेकिन कितनी देर तक ऐसा कर सकते हो तुम?
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मैं यहां हूं तुम्हें किसी तरह अतल शून्य में धकेल देने को जहां तुम मरते हो और बुद्ध उत्पन्न होते हैं। उस एक बुद्ध को पा लेने की ही तो सदा समस्या होती है। एक बार वह एक बुद्ध मौजूद हो जाता है तो मौलिक संपूर्ति, मौलिक जरूरत पूरी हो जाती है तब बहुत सारे बुद्ध तुरंत संभव हो जाते हैं और यदि बहुत होते हैं, तो हजारों संभव हो जाते हैं जो पहला है वह कार्य करता है एक चिंगारी की भांति, और एक छोटी सी चिंगारी काफी होती है सारी पृथ्वी को जला देने के लिए। इसी तरह ही घटा है अतीत में एक बार गौतम हो गए बुद्ध, तो धीरे धीरे हजारों को होना पड़ा। क्योंकि यह सवाल होने का नहीं, तुम वह हो ही। किसी को तुम्हें याद दिलाना पड़ता है, बस यही होती है बात।
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अभी एक दिन मैं रामकृष्ण की एक कथा पढ़ रहा था। मुझे प्यारी लगती है वह मैं फिर - फिर पढ़ता हूं उसे जब कभी मेरे सामने आ जाती है वह । वह सारी कथा गुरु के कैटेलिटिक उत्पेरक होने की ही है। कथा है एक बच्चे को जन्म देते हुए एक शेरनी मर गई, और बच्चे को पाला – पोस। बकरियों ने निस्संदेह, बाघ स्वयं को इस तरह बकरी ही समझता था। यह बात सहज थी, स्वाभाविक थी, बकरियों द्वारा पाले जाने से, बकरियों के साथ रहने से वह समझने लगा कि वह बकरी था । वह शाकाहारी बना रहा, घास ही खाता – चबाता रहा। उसके पास कोई धारणा न थी। अपने स्वप्नों तक में भी वह स्वप्न न देख सकता था कि वह बाघ था, और वह था तो बाघ ।
फिर एक दिन ऐसा हुआ कि एक के बाघ ने बकरियों के इस झुंड को देखा और वह का बाघ विश्वास न कर सका अपनी दृष्टि पर एक युवा बाघ चल रहा था बकरियों के बीच। न तो बकरियां भयभीत