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पतंजलि कहते हैं, 'अतीत स्मृति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, वह एक स्वप्निल घटना है, वह अब मौजूद नहीं। तुम उसे अनकिया कर सकते हो मात्र प्रति - प्रसव में जाने से ही। तुम जाते हो पीछे की ओर, उसे फिर से जीते हो तुम्हारी स्मृति में तुम फिर से उस व्यक्ति की हत्या कर देते हो। उस घाव को अनुभव करो फिर से जब तुमने उस आदमी की हत्या की तो उस क्षण की पीड़ा को अनुभव करना। सारी पीड़ा को फिर से जीना और इसी तरह भर जाएगा घाव और अतीत धुल जाएगा।'
पतंजलि के साथ मुक्ति संभव जान पड़ती है; महावीर के साथ वह असंभव मालूम पड़ती है। इसीलिए जैन धर्म ज्यादा नहीं फैल पाया। मोक्ष करीब करीब असंभव ही जान पड़ता है, अविश्वसनीय । पतंजलि पूरब की गढ़ रहस्यवादिता के आधारों में से एक बन गए हैं।
महावीर रहे किनारे पर, सीमा पर ही वे कभी न बन सके केंद्रीय शक्ति। वे बहुत ज्यादा जुड़े है क्रिया के साथ, और वे कर्मों की वास्तविकता में बहुत ज्यादा विश्वास रखते हैं। पतंजलि कहते हैं, कर्म होते हैं एकदम स्वप्नों की भाति। सारा संसार और कुछ नहीं सिवाय एक बड़े रंगमंच के, और सारा जीवन और कुछ नहीं सिवाय एक नाटक के तुम उसे खेलते रहे क्योंकि तुम्हें होश नहीं था। यदि तुम सजग रहे होते, तो कोई समस्या न होती ।'
अब होश में आओ और होशपूर्ण ऊर्जा को तुम्हारे अतीत तक ले आओ। वह सारे अतीत को जला देगी : दुख और सुख दोनों तिरोहित हो जाएंगे, अच्छी बुरी दोनों चीजें तिरोहित हो जाएंगी। और जब दोनों मिट जाती हैं, जब तुम अच्छे – बुरे के द्वैत के पार हो जाते हो, तुम मुक्त हो जाते हो। तब न तो सुख होता है और न दुख तब एक शाति उतरती है, गह से शाति इस शाति में एक नयी घटना घटती है – सच्चिदानंद की। उस गहन शाति में सत्य थी टच होता है तुममें, होश घटता है तुममें; आनंद घटित होता है तुममें। मैं पूरी तरह राजी हूं पतंजलि से।
इसीलिए महावीर का सारा दृष्टिकोण अधिकाधिक नैतिक हो गया। जैन धर्म तो बिलकुल ही भूल गया है योग को। तुम जैन मुनियों को योग करते हुए नहीं पाओगे – कभी नहीं। वे तो बस अपने कर्म का संतुलन बैठा रहे होते हैं! वे निरंतर सोच रहे हैं कि क्या करें और क्या न करें। कैसे घटित हो अंतस -सत्ता यह वे बिलकुल भूल ही चुके हैं। क्या करना है और क्या नहीं करना है, कर्तव्य और अकर्तव्य-उनका सारा दृष्टिकोण कर्मों से जुड़ा होता है - अंधेरे में मत चलो, क्योंकि कहीं कोई कीटपतंगा मर जाएगा तो और फिर वही कर्म, रात में मत खाओ, क्योंकि अंधेरे में शायद कोई कीड़ा गिर जाए, कोई मक्खी गिर जाए भोजन में और शायद तुम उन्हें खा लो, और हिंसा हो जाए। इस खाओ, उसे मत करो। बारिश में भी मत चलो क्योंकि जब जमीन गीली होती है, बहुत बार कीड़े पतंगे जमीन पर चलते रहते हैं, बहुत से कीड़े पैदा होते हैं वर्षा में वे निरंतर चिंतित रहते है कार्यों के विषय में, क्या करना और क्या नहीं करना। उनका सारा दृष्टिकोण जुड़ा होता है केवल घटना के साथ वे बिलकुल ही भूल गए हैं कि कैसे होना है, केंद्र में कैसे अवस्थित होना है वे योग नहीं करते, वे स्थान नहीं करते। वे कर्म से जुड़े हैं, पतंजलि जुड़े हैं चेतना से ।
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