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तुम देख पाओगे अंधेरे बादलों में छिपी रजत - रेखा । तुम आनंदित हो जाओगे साधारण चीजों से, छोटी-छोटी चीजें, लेकिन तुम इतने ज्यादा आनंदित होओगे उनसे कि वे समृद्ध हो जाएंगी, समृद्ध चीजों से ज्यादा समृद्ध भिखारी का चोला पहने तुम चल सकते हो किसी सम्राट की भांति । यदि तुमने पुण्य कर्म किए होते हैं, तो सुख पीछे चला आता है। यदि तुमने पाप किया, बुरे कर्म हिंसात्मक, आक्रामक, दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाला काम तो पीड़ा चली आती है। ध्यान रहे, यह तो उसका फल है - एक स्वाभाविक परिणाम |
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ईसाई, यहूदी, मुसलमान सोचते हैं कि ईश्वर तुम्हें सजा देता है क्योंकि तुम बुरा करते हो। तुम अच्छा करते हो और ईश्वर तुम्हारी प्रशंसा करता है, तुम्हें उपहार देता है – खुशनुमा चीजों का उपहार। हिंदू ज्यादा कुशल हैं, वे ईश्वर को नहीं लाते बीच में। वे तो बस कहते हैं, 'यह नियम है,' – जैसे कि गुरुत्वाकर्षण का नियम है, यदि तुम संतुलित होकर चलते हो, तो तुम गिरते नहीं, तुम आनंदित होते चलने से यदि तुम किसी शराबी की भांति असंतुलित होकर चलते हो, तो तुम गिर पड़ते हो और हड्डी टूट जाती है। ऐसा नहीं है कि ईश्वर तुम्हें सजा दे रहा होता है क्योंकि तुमने कुछ गलत किया; यह तो एक सीधा-साफ नियम होता है गुरुत्वाकर्षण का तुम अच्छा भोजन करते, अच्छी चीजें खाते, स्वास्थ्य बनता; तुम गलत ढंग से खाते, गलत चीजें तो बीमारी चली आती। ऐसा नहीं कि कोई तुम्हें सजा दे रहा होता है कोई नहीं है वहां तुम्हें सजा देने को बस नियम है, केवल प्रकृति- ताओ, ऋत् ।
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कर्म का नियम सीधा – साफ है। यदि तुम ईश्वर की बात करने लगते हो, तो चीजें जटिल हो जा हैं, बहुत जटिल। कई बार हम देखते हैं कि बुरा आदमी जीवन में आनंदित हो रहा है, और कई बार हम अच्छे आदमी को पीड़ा भोगते देखते हैं तो प्रश्न उठता है इस बारे में कि ईश्वर कर क्या रहा है २: वह अन्यायी जान पड़ता है। यदि वह न्यायी है, तब तो बुरे व्यक्ति को पीड़ा भोगनी चाहिए और अच्छे को जीवन का ज्यादा आनंद मनाना चाहिए।
जटिलता यह है यदि परमात्मा बिलकुल न्यायपूर्ण है तब तुम उसे करुणापूर्ण नहीं जान सकते क्योंकि तब करुणा कैसे न्याययुक्त बनेगी? यदि परमात्मा न्यायपूर्ण है तो वह करुणापूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि करुणा का अर्थ होता है कि यदि किसी ने कुछ गलत किया, पर फिर भी प्रार्थना किए जाता है तो तुम उसे माफ कर देते हो इसलिए प्रार्थना बहुत अर्थपूर्ण बन जाती है ईसाइयों यहूदियों और मुसलमानों की दुनिया में 'प्रार्थना करो, क्योंकि यदि तुम प्रार्थना करते हो तो परमात्मा तुम्हें माफ कर देगा। वह स्वयं करुणा है।' इसका अर्थ हुआ कि वह अन्यायी होगा। यदि किसी व्यक्ति ने प्रार्थना नहीं की और वह पापी रहा है, उसे सजा मिलेगी और नर्क में फेंक दिया जाएगा। और वह आदमी जिसने कि प्रार्थना की है और ज्यादा बड़ा पापी रहा है, स्वर्ग में प्रवेश पाएगा। यह बात अन्यायपूर्ण मालूम पड़ती है। मात्र प्रार्थना करने से? और प्रार्थना चीज क्या है? क्या यह किसी प्रकार की है? तुम प्रार्थना में करते क्या हो? तुम खुशामद करते हो परमात्मा की ।
खुशामद