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आंखों में क्रोध ही देखूगा, मैं अभी भी तुममें शत्रु को ही देखूगा, और तुम फिर शत्रु तो नहीं रहते यदि तुममें पछतावा होता है तो। सारी रात तुम सो न सके, और तुम आए हो माफी मांगने। मैं उस ढंग से व्यवहार करूंगा क्योंकि मैं बीते कल को प्रक्षेपित कर दूंगा तुम्हारे चेहरे पर। वह बीता कल नयी बात 5 उत्पन्न होने की सारी संभावना को ही नष्ट कर देगा। मैं स्वीकार नहीं करूंगा तुम्हारे पछतावे को,
नहीं स्वीकारूंगा कि तुम्हें अफसोस हो रहा है। मैं सोचूंगा कि तुम कोई चालाकी कर रहे हो। मैं सोचूंगा कि इसके पीछे जरूर कोई और बात होगी। क्योंकि क्रोध, क्रोधी आदमी का चेहरा अभी भी मौजूद है मेरे और तुम्हारे बीच। मैं उसे इतना ज्यादा प्रक्षेपित कर सकता हूं कि तुम्हारे लिए असंभव हो जाएगा पछताना। या, मैं उसे इतने गहन रूप से प्रक्षेपित कर सकता हूं कि तुम पूरी तरह भूल ही जाओगे कि तुम माफी मांगने आए थे। मेरा व्यवहार फिर एक स्थिति बन सकता है जिसमें कि तुम क्रोधित हो जाओ। और यदि तुम क्रोधित होते हो, तो मेरा प्रक्षेपण पूरा हो जाता है, मजबूत हो जाता
अस्तित्वगत स्मृति तो ठीक होती है, उसे तो मौजूद रहना ही होता है। बुद्ध को याद रखना ही है अपने शिष्यों को। आनंद आनंद है और सारिपुत्र है सारिपुत्र। वह इस विषय को लेकर कभी उलझन में नहीं पड़े कि कौन आनंद है और कौन सारिपत्र है। वे स्मति बनाए रहते हैं, लेकिन वह तो बस हिस्सा होती है मस्तिष्क के ढांचे का, अलग – थलग कार्य करती हुई, जैसे कि तुम्हारी जेब में कंप्यूटर हो
और कंप्यूटर स्मृति को साथ रखता हो। बुद्ध का मस्तिष्क जेब में पड़ा कंप्यूटर बन गया है, एक अलग घटना। वह उनके संबंधों में नहीं आता, वे उसे सदा साथ लिए नहीं रहते। जब उसकी जरूरत होती है तो वे देख लेते हैं उसमें, लेकिन वे कभी तादात्म्य नहीं बनाते उसके साथ।
जब कोई व्यक्ति पूरी जागरूकता सहित जीता है वर्तमान में - और पूरी जागरूकता के साथ तुम किसी और जगह नहीं जी सकते क्योंकि जब तुम जागरूक होते हो तो केवल वर्तमान ही बचता है वहा, अतीत न रहा, भविष्य न रहा अब। सारा जीवन बन जाता है वर्तमान की घटना-तब कोई कर्म, कर्म के कोई बीज, संचित नहीं होते। तुम मुक्त होते हो तुम्हारे अपने संबंध से। तुम्हारे अपने से ही निर्मित हुआ था बंधन।
और तुम मुक्त हो सकते हो। तुम्हें पहले सारी दुनिया के मुक्त हो जाने की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं। तुम आनंदित हो सकते हो। सारी दुनिया दुखों से मुक्त हो जाए तुम्हें इसके लिए प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं। यदि तुम प्रतीक्षा करते हो, तो तुम प्रतीक्षा करोगे व्यर्थ ही –यह बात घटित न होगी।
यह एक आंतरिक घटना है. बंधन से मुक्त होना। तुम संपूर्णतया मुक्त होकर जी सकते हो संपूर्णतया अमुक्त संसार में। तुम समग्ररूपेण मुक्त होकर जी सकते हो, कैद में भी हो तो इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि यह एक आंतरिक दृष्टिकोण होता है। यदि तुम्हारे अंतरबीज टूट जाते हैं, तुम मुक्त होते हो। तुम बुद्ध को कैदी नहीं बना सकते। डाल दो उन्हें जेल में लेकिन तो भी तुम नहीं बना सकते