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पदचिह्न नहीं छोड़ते, वह कोई पदचिह्न नहीं छोड़ता है। यदि तुम जमीन पर चलते हो तो तुम्हारे पदचिह्न छूट जाते हैं।
वह आदमी जो जागा नहीं है, चलता है धरती पर न ही केवल धरती पर बल्कि गीली धरती पर चलता है, छोड़ता चलता है पदचिह्न अतीत। जागरण पाने वाला व्यक्ति उड़ता है पक्षी की भांति;
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वह कोई पदचिह्न नहीं छोड़ता आकाश में, कुछ नहीं छोड़ता वह। यदि तुम देखो पीछे की ओर तो वहां आकाश होता है, यदि तुम देखो आगे तो वहां आकाश होता है – कोई पदचिह्न नहीं, कोई स्मृतियां नहीं ।
जब मैं ऐसा कहता हूं तो मेरा यह अर्थ नहीं होता कि यदि बुद्ध तुम्हें जानते हों तो वे तुम्हें याद न रखेंगे। उनके पास होती हैं स्मृतियां, लेकिन मनोवैज्ञानिक स्मृतियां नहीं होतीं। मन कार्य करता है, लेकिन वह कार्य करता है यंत्रवत अलग -थलग । उनका कोई तादात्म्य नहीं मन के साथ। यदि तुम जाओ बुद्ध के पास और तुम कहो, मैं यहां पहले आता रहा हूं। क्या आपको मेरी याद है?' उन्हें याद आ जाएगी तुम्हारी। वे तुम्हें याद कर पाएंगे किसी दूसरे से ज्यादा बेहतर ढंग से, क्योंकि उन पर कोई बोझ नहीं होता। उनके पास साफ, दर्पण जैसा मन होता है।
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तुम्हें इस भेद को समझ लेना है, क्योंकि कई बार लोग सोचते हैं कि जब कोई आदमी संपूर्णतया सजग और होशपूर्ण हो जाता है और मन मिट जाता है, तो वह सब कुछ भूल जाता होगा। नहीं, वह कोई चीज साथ नहीं रखता, वह याद रखता है। उसकी क्रियाशीलता बेहतर होती है, मन ज्यादा साफ होता है, दर्पण समान होता है। उसके पास अस्तित्वगत स्मृतियां होती हैं, लेकिन उनके पास मनोवैज्ञानिक स्मृतियां नहीं होती हैं। भेद बहुत सूक्ष्म है।
उदाहरण के लिए तुम कल मेरे पास आए और तुम्हें क्रोध आया था मुझ पर। तुम आज फिर आ गए और मैं तुम्हें याद रखूंगा क्योंकि तुम कल आए थे। मुझे याद रहेगा तुम्हारा चेहरा, मैं पहचान लूंगा तुम्हें, लेकिन मैं तुम्हारे क्रोध का घाव साथ नहीं लिए रहता। वह तुम्हारे किए की बात है मैं यह घाव साथ नहीं लिए रहता कि तुम क्रोधित थे। पहली बात तो यह है कि मैंने घाव को कभी मौजूद होने ही नहीं दिया। जब तुम क्रोधित थे, तब वह कुछ ऐसी बात थी जिसे तुम स्वयं के साथ कर रहे थे, मेरे साथ नहीं। यह मात्र एक संयोग था कि मैं वहां मौजूद था। मैं घाव साथ नहीं लिए रहता। मैं ऐसा व्यवहार नहीं करूंगा जैसे कि तुम वही आदमी हो जो कि कल क्रोधित था। क्रोध मेरे और तुम्हारे बीच नहीं होगा। क्रोध वर्तमान संबंध को नहीं रंगेगा। यदि क्रोध रंग देता है वर्तमान संबंध को, तो यह एक मनोवैज्ञानिक स्मृति होती है, घाव साथ ही बना रहता है।
और मनोवैज्ञानिक स्मृति एक बहुत झुठलाने वाली प्रक्रिया होती है। तुम शायद आए हो माफी मांगने और यदि मैं घाव लिए रहूं, तो मैं नहीं देख सकता तुम्हारा आज का चेहरा जो माफी मांगने आया होता है, जो कि पछताने आया होता है यदि मैं देखता हूं बीते कल का पुराना चेहरा तो मैं अभी भी