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गए। वह मार्ग बड़ा कठिन, दुरुह होता है। तुम बाहर आने के लिए संघर्ष करते हो और यह बात तकलीफ भरी होती है, क्योंकि नौ महीने तुम रहते रहे गर्भ जैसे स्वर्ग में।
हमारा सारा विज्ञान अभी तक गर्भाशय से ज्यादा सुविधापूर्ण चीज निर्मित नहीं कर पाया है। वह परिपूर्ण है। बच्चा बिलकुल जिम्मेदारी के बिना जीता है, बिना किसी चिंता के, रोजी-रोटी की कोई फिक्र नहीं, संसार की या कि संबंध की कोई चिंता ही नहीं क्योंकि कोई और दूसरा है ही नहीं, किसी संबंध का कोई प्रश्न ही नहीं। वह मा द्वारा पोषित होता है, किसी चीज को पचाने तक की भी फिक्र नहीं होती। मां पचा लिया करती है और बच्चा केवल पाता है पचाया हुआ भोजन सांस लेने तक की चिंता नहीं होती। मां सास लेती है, बच्चा आक्सीजन पाता है और वह तैरता है पानी में।
हिंदुओं के पास एक वर्णनात्मक चित्र है विष्णु का। वे कहते हैं कि विष्णु सागर पर तिरते हैं। तुमने देखा ही होगा चित्र : नाग-शय्या पर वे विश्राम करते हैं; सर्प रखवाली करता है और विष्णु सोते हैं। वह चित्र वस्तुतः प्रतीक रूप है गर्भ का हर बालक विष्णु है, भगवान की मूरत है कम से कम गर्भ में तो हर चीज पूरी है, कुछ भी कमी नहीं। वह पानी जिसमें कि वह तैरता है बिलकुल सागर - जल की भांति होता है, वही रसायन होते हैं, वही नमक। इसीलिए गर्भवती स्त्री ज्यादा नमक और नमकीन चीजें खाने लगती है, नमकीन चीजों के लिए लालायित रहती है गर्भाशय को जरूरत रहती है ज्यादा नमक की वह ठीक वैसी ही रासायनिक स्थिति होती है जैसी कि सागर की होती है और बच्चा तैरता है सागर में, एकदम आराम से। तापमान बिलकुल वही बना रहता है। बाहर चाहे ठंड हो या गरम, उसे कुछ अंतर नहीं पड़ता, मां का गर्भ बच्चे के लिए बिलकुल उतना ही तापमान बनाए रखता है। वह पूरे ऐश्वर्य में जीता है। उस ऐश्वर्य से बाहर निकल अंधेरे, संकरे, पीड़ा भरे मार्ग में आकर बच्चा चीख उठता है।
यदि
तुम पीछे जा सको तुम्हारे जन्म की चोट तक तो तुम चीख पड़ोगे, और तुम चीखोगे यदि तुम फिर से जीयो तो। एक घड़ी आएगी जब तुम अनुभव करोगे कि तुम बच्चे ही हो, वह नहीं जो कि
स्मरण कर रहा है।
तुम बाहर आ रहे होते हो जन्म – मार्ग से, एक चीख चली आती है। यह चीख तुम्हारे सारे अस्तित्व को आंदोलित कर देती है, यह बिलकुल तुम्हारे मूल अस्तित्व से ही आती है, तुम्हारे अस्तित्व की मूल जड़ों से वह चीख तुम्हें बहुत सारी चीजों से मुक्त करा देगी। तुम फिर से बच्चे बन जाओगे, निर्दोष! यह होता है पुनर्जन्म।
यह भी पर्याप्त नहीं होता, क्योंकि यह केवल एक जन्म का होता है। यदि तुम ऐसा एक जन्म के साथ कर सकते हो, तो तुम दूसरे जन्मों में प्रवेश कर सकते हो। तुम चले जाते हो बिलकुल ही पहरमें दिन तक सृष्टि के दिन के दिन तक या, अगर तुम ईसाई हो तब आदम की परिभाषा अच्छी रहेगी तार जाते हो पीछे की ओर, फिर तुम होते हो ईदन के बगीचे में तुम बन गए होते हो आदम