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और हब्बा। तब तुम्हारे पिछले सारे कर्म, आदत, संस्कार तिरोहित हो जाते हैं, विलीन हो जाते हैं। तुम फिर से प्रवेश कर गए स्वर्ग में यही है प्रक्रिया प्रति - प्रसव की । अब इन सूत्रों में प्रवेश करें।
चाहे वर्तमान में पूरे हों या भविष्य में कर्मगत अनुभवों की जड़ें होती हैं पांच क्लेशों में
हमने बात की पांच क्लेशों की, पाच दुखों की पांच कारणों की जो कि दुख निर्मित करते हैं। सारे कर्म, चाहे वे वर्तमान में पूरे हों कि भविष्य में, कर्मगत अनुभवों की जड़ें होती हैं पांच दुखों में पहला क्लेश है अविद्या, जागरूकता का अभाव और बाकी चार तो उसी से आए परिणाम हैं। अंतिम है 'अभिनिवेश' जीवन की लालसा। वे सारे कर्म जिन्हें तुम करते हो, मूलतः उत्पन्न होते हैं जागरूकता के अभाव से ।
इसका अर्थ क्या होता है, और उसे क्या कहा जाएगा जब बुद्ध चलते, खाते, सोते? क्या वे बातें कर्म नहीं? नहीं, वे नहीं हैं। वे कर्म नहीं है क्योंकि वे उत्पन्न होते जागरुकता से वे भविष्य के लिए कोई बीज साथ नहीं लिए रहते। यदि बुद्ध चलते हैं, तो वह चलना वर्तमान का होता है। उसका अतीत में चलने से कोई संबंध नहीं होता। यह बात अतीत से नहीं जुड़ी होती कि जिसके कारण वे चल रहे होते हैं। वह एक वर्तमान की जरूरत होती है, बिलकुल अभी की, यहीं और अभी की। वह सहज स्वाभाविक होती है। यदि बुद्ध भूख अनुभव करते हैं, तो वे भोजन करते हैं। लेकिन यह बात स्वतः प्रवाहित होती है, यहीं और अभी। अंतर को समझ लेना है।
पूरब
के अध्यात्म विज्ञान की समस्याओं में से एक रही है यह समस्या बुद्ध चालीस वर्षों तक
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जीवित रहे उनके बुद्धत्व को उपलब्ध होने के बाद, उन कर्मों का क्या होगा जिन्हें उन्होंने किया उन चालीस वर्षों के दौरान ? यदि वे बीज बन गए होते तो उन्हें फिर से जन्म लेना पड़ता या कि कुछ और अंतर होता है?
नहीं बनते बीज, वे नहीं बनते तुम रोज भोजन करते हो दिन के एक बजे वह दो ढंग से किया जा सकता है। तुम देखते हो घड़ी की तरफ और अचानक तुम अनुभव करते हो कि पेट में भूख कराह रही है। यह भूख जुड़ी है अतीत से यह स्वतःस्फूर्त नहीं है क्योंकि हर रोज तुम भोजन करते रहे हो एक बजे। एक बजे का समय तुम्हें याद दिलाता है, यह शरीर को एकदम उकसा देता है और सारे शरीर को भूख लगने लगती है। तुम कहोगे कि मात्र याद दिलाने से किसी को भूख नहीं लग सकती - ठीक। लेकिन शरीर तुम्हारे मन के पीछे चलता है। तुरंत शरीर को याद आ जाता है कि एक बजा है, मुझे भूख लगनी ही चाहिए। शरीर इसका अनुसरण करता है: पेट में तुम भूख का मंथन अनुभव करते हो, यह होती है अतीत के कारण निर्मित हुई एक झूठी भूख । यदि घड़ी कहती है कि केवल बारह