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नकारात्मक चीजें तुम्हारे आसपास होती हैं? इन्हीं नकारात्मकताओ द्वारा, जहां कहीं भी तुम देखते हो, जीवन जीने जैसा नहीं लगता है। जहां कहीं तुम देखते हो नकारात्मक द्वारा, हर चीज अंधेरी, निराश, नर्क जान पड़ती है। जीवन की लालसा का पीछे की ओर ले जाकर समाधान करना पड़ता है, तो तुम पाओगे दवेष। यदि तुम नीचे उतरो, पीछे की ओर जीवन के प्रति चिपकाव सहित, उसके पीछे तुम पाओगे घृणा की पर्त। इसीलिए तुम जी नहीं पाए हो। सारे समाज, सभ्यताएं, वे बहुत घृणा लाद देती हैं तुम पर।
यदि तुम पढ़ो हिंदू शास्त्र या कि जैन शास्त्र, तो वे घृणा सिखाते हैं। वे कहते हैं कि यदि तुम किसी स्त्री के प्रेम में हो, तो पहले देख–समझ लेना स्त्री क्या है। क्या होती है स्त्री? –मात्र एक ढांचा हड्डियों का, मांस, रक्त, श्लेष्मा, असुंदर चीजों का। स्त्री के भीतर झांक लेना; सौंदर्य तो ऊपर होता है। और त्वचा के पीछे हर चीज असुंदर होती है, अरुचिकर होती है।
यदि तुम ऐसे लोगों द्वारा सिखाए-पढ़ाए जाते हो, तो जब कभी तुम प्रेम में पड़ते हो, तो तुम प्रेम न कर पाओगे स्त्री को क्योंकि घृणा आ पहुंचेगी। तुम अनुभव करोगे, अरुचि उठ रही है। और प्रेम कैसे संभव हो सकता है घृणा के साथ? और यदि तुम शिक्षित किए गये हो इन बाहरी तत्वों द्वारा जो जीवन के स्रोतों को ही विषमय बना देते हैं, तो तुम दुखी हो जाओगे। बिना प्रेम के कैसे तुम प्रसन्न रह सकते हो? तुम दुखी होओगे। जब तुम दुखी होते हो तो तुम चिपकते हो जीवन से।
इसलिए पतजिल कहते हैं, 'जीवन से चिपकना सबसे ऊपरी पर्त है। गहरे जाओ; उसके पीछे, तुम पाओगे, घृणा की, दवेष की पर्त।'
लेकिन क्यों करते हो तुम घृणा? ज्यादा गहरे उतरो और तुम पाओगे आसक्ति। तुम आकर्षित होते हो किसी चीज की ओर। और यदि तुम आकर्षित होते हो, केवल तभी तुम घृणा कर सकते हो। यदि तुम आकर्षित नहीं हो सकते तो घणा नहीं कर सकते। आकर्षण निर्मित कर सकता है अनाकर्षण को, अनाकर्षण दूसरा छोर है आकर्षण का। ज्यादा गहरे जाओ-दूसरी पर्त तुम पाओगे अस्मिता की, अहंकार की, अनुभूति कि मैं हूं। और यह 'मैं अस्तित्व रखता है आसक्ति और द्वेष के द्वारा। यदि राग और दवेष, आकर्षण और अनाकर्षण दोनों गिर जाएं तो 'मैं' वहां खड़ा नहीं रह सकता।'मैं' गिर जाएगा उसके साथ ही।
तुम और तुम्हारा अहंकार अस्तित्व रखता है अच्छे और बुरे की तुम्हारी धारणाओं के द्वारा, प्रेम और घणा की धारणाएं, क्या संदर है और क्या असंदर, इसकी धारणाएं। दवैत अहंकार को निर्मित करता है। तो राग और द्वेष के द्वैत के पीछे तुम पाओगे अहंकार को। क्यों बना रहता है अहंकार? पतंजलि कहते हैं, 'और भी ज्यादा गहरे में जाओ और तुम पाओगे-जागरूकता का अभाव। जीवन के सारे दुख का मूलभूत कारण है जागरूकता का अभाव। यही है कारण, सारी बात का मुख्य कारण। तुम नहीं पा