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वहा मौजूद है; तुम्हारा सारा अतीत अभी भी है वहा। वह फिल्म की भाति है रोल किया हुआ, लपेट कर बंद किया हुआ और प्रतीक्षा कर रहा है भीतर। तुम खोल दो उसे, तुम देखने लगो फिल्म को। यही प्रक्रिया है प्रति-प्रसव की। इसका अर्थ है पीछे की ओर एकदम मूल कारण तक लौटना। और यही सौंदर्य है प्रक्रिया का यदि तुम चेतन रूप से पीछे की ओर जा सको, यदि तुम चेतन रूप से घाव को अनुभव कर सको, तो घाव तुरंत भर जाता है।
क्यों भर जाता है वह?-क्योंकि घाव निर्मित होता है अचेतन द्वारा, असजगता द्वारा। घाव हिस्सा है अज्ञान का, निद्रा का। जब तुम होशपूर्वक पीछे की ओर जाते हो और देखते हो घाव को, तो वही होश स्वास्थ्यदायी शक्ति होता है। अतीत में, जब घाव बना था, वह बना था अचेतन में। तुम क्रोधित थे, क्रोध ने तुम पर अधिकार जमा लिया था। तुमने कुछ किया था; तुमने मार डाला था एक आदमी को
और तुम दुनिया से यह सच्चाई छुपाते रहे। तुम इसे छुपा सकते हो पुलिस से, तुम इसे छुपा सकते हो न्यायालय और कानून से, लेकिन इसे तुम स्वयं से ही कैसे छुपा सकते हो? तुम जानते हो यह बात चोट करती है। जब कभी कोई तुम्हें अवसर देता है क्रोधित होने का तो तुम भयभीत हो जाते हो, क्योंकि वह बात फिर घट सकती है, तुम मार सकते हो पत्नी को। वापस लौटो, क्योंकि उस क्षण जब तुमने खून किया किसी व्यक्ति का या कि तुमने व्यवहार किया बहत क्रोधपूर्ण और पागल ढंग से, तो तुम होश में न थे। अचेतन में वे घाव बचे ही रहे हैं। अब होशपूर्वक चलना।
प्रति-प्रसव, पीछे लौटना, इसका अर्थ है उन चीजों तक होशपूर्वक जाना जिन्हें तुमने होश के बिना किया है। पीछे जाओ-केवल होश का, चेतना का प्रकाश ही स्वस्थ करता है। वह एक स्वास्थ्यदायक शक्ति होती है। जिस किसी चीज को भी तुम होशपूर्वक बना सको वह भली-चंगी हो जायेगी। और फिर वह और पीड़ा न देगी।
वह आदमी जो पीछे की ओर आता है, अतीत को निर्मक्त कर देता है। फिर अतीत क्रियान्वित नहीं हो रहा होता, तब अतीत की उस पर कोई पकड़ नहीं रहती और अतीत समाप्त हो जाता है। अतीत का उसकी अंतस –सत्ता में कोई स्थान नहीं होता। और जब अतीत का तुम्हारी अंतस-सत्ता में कोई स्थान नहीं रहता तभी तुम वर्तमान के प्रति उपलब्ध होते हो -उससे पहले कभी नहीं। तुम्हें थोड़ी खाली जगह की जरूरत है, अतीत इतना ज्यादा होता है भीतर-एक कबाड़खाना, मरी हुई चीजों का। वर्तमान के प्रवेश होने को कोई स्थान नहीं। वह कूड़ा-करकट भविष्य के बारे में ही स्वप्न देखता जाता है। तो आधी जगह तो उसी से भरी होती है जो अब है ही नहीं, और आधी जगह उससे भरी होती है जो अभी आया ही नहीं। और वर्तमान? -वह केवल प्रतीक्षा करता है दवार के बाहर। इसीलिए वर्तमान और कुछ नहीं सिवाय एक रास्ते के, अतीत से भविष्य तक का रास्ता, मात्र एक क्षणिक
रास्ता ।
खत्म करो अतीत की बात! यदि तुम अतीत से नहीं टूटते, तो तुम एक प्रेतात्मा का जीवन जी रहे होते हो। तुम्हारा जीवन सच्चा नहीं होता, वह अस्तित्वगत नहीं होता। अतीत जीता है तुम्हारे द्वारा;