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जीवन अंतर्ग्रस्त होते हैं। तुम बहुत से घाव पाओगे तुममें जो पीड़ा देते हैं, और उन्हीं घावों के कारण तुम उदास अनुभव करते हो; वे उदास होते हैं। वे घाव अभी भी सूखे नहीं, वे जीवंत हैं। प्रति -प्रसव की विधि, स्रोत तक लौटने की विधि, कार्य से कारण तक लौटने की विधि उन्हें भर देगी, ठीक कर देगी। कैसे ठीक करती है वह? कौन -सी घटना है जो उसमें समायी होती है।
जब कभी तुम पीछे की ओर जाते हो, पहले तो तुम दूसरों पर जिम्मेदारी डालने की बात गिरा देते हो, क्योंकि यदि तुम दूसरों पर जिम्मेदारी डालते हो तो तुम बाहर की ओर जाते हो। तब सारी प्रक्रिया गलत हो जाती है। तुम कारण को दूसरे में ढूंढने की कोशिश करते हो : 'पत्नी गलत क्यों है?' तब यह 'क्यों' पत्नी के व्यवहार में उतरता जाता है। तुम चूक गए पहला चरण और तब सारी प्रक्रिया ही गलत हो जाएगी। क्यों मैं दुखी हूं? क्यों मैं क्रोध में हूं?-आंखें बंद कर लो और इसे एक गहन ध्यान बनने दो। जमीन पर लेट जाओ, आंखें बंद कर लो, शरीर को शिथिल करो और अनुभव करो कि तुम क्यों क्रोधित हो। पत्नी को तो बिलकुल भूल ही जाओ; वह तो एक बहाना है-क, ख, ग, जो भी हो, भूल जाओ उस बहाने को। जरा और गहरे उतरना अपने में, क्रोध में उतरते जाना। स्वयं क्रोध का ही प्रयोग करना नदी की भांति। क्रोध में तुम बहते हो और क्रोध तुम्हें ले जाएगा भीतर। तुम सूक्ष्म घाव पाओगे तुममें।
पत्नी गलत जान पड़ती है, क्योंकि उसने छू दिया था तुम्हारा कोई सूक्ष्म घाव, कोई ऐसी चीज जो चोट करती है। तुमने सदा सोचा कि तुम सुंदर नहीं, तुम्हारा चेहरा कुरूप है, और भीतर घाव है। जब पत्नी नाराज होती है, तो वह तुम्हें सचेत कर देगी तुम्हारे चेहरे के प्रति। वह कहेगी, 'जाओ और देखो दर्पण में!' चोट पड़ती है। तुमने विश्वासघात किया होता है पत्नी के साथ और जब वह तंग करना चाहती है, तब यह बात फिर उठाएगी वह कि 'तुम उस स्त्री के साथ हंस-हंस कर क्यों बोल रहे थे? क्यों तुम इतनी खुशी से बैठे हुए थे उस स्त्री के साथ?' एक घाव छू दिया गया। तुम विश्वासघाती रहे हो, तुम अपराधी अनुभव करते हो। घाव जीवंत होता है। तुम बंद कर लो आंखें, अनभव करो क्रोध को, उसे अपनी समग्रता में उठने दो ताकि तुम उसे पूरी तरह देख सको, कि वह क्या है। तब उस ऊर्जा को तुम्हारी मदद करने देना अतीत की ओर सरकने में, क्योंकि क्रोध आ रहा होता है अतीत से। निस्संदेह वह भविष्य से तो आ नहीं सकता है। भविष्य का तो अभी अस्तित्व ही नहीं बना है। वह नहीं आ रहा है वर्तमान से।
यही है सारा दृष्टिकोण कर्म का, यह भविष्य से नहीं आ सकता क्योंकि भविष्य अभी आया ही नहीं है। और यह वर्तमान से नहीं आ सकता, क्योंकि तुम बिलकुल जानते ही नहीं कि वह क्या है। वर्तमान तो जाना जा सकता है केवल जागे हुओं द्वारा। तुम जीते हो केवल अतीत में, तो यह जरूर कहीं न कहीं अतीत से ही आ रहा होगा। घाव रहा होगा कहीं तुम्हारी स्मृतियों में। वापस लौटो। कोई एक घाव नहीं होगा, बहुत सारे होंगे, छोटे, बड़े। ज्यादा गहरे जाना और ढूंढ लेना पहला घाव, सारे क्रोध का मूल स्रोत। तुम खोज पाओगे उसे यदि तुम कोशिश करो तो, क्योंकि वह पहले से ही वहां होता है। वह