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न होती तो भी तुम उतने ही क्रोधित होते - किसी और चीज के प्रति, किसी विचार के प्रति, लेकि क्रोध तो आना ही था। वह कुछ ऐसी बात थी जो तुम्हारे अपने अचेतन से आ रही थी।
हर कोई जिम्मेदार है, पूरी तरह जिम्मेदार होता है उसके अपने लिए और अपने व्यवहार के लिए शुरू में यह बात तुम्हें बहुत उदास भावदशा देगी कि तुम जिम्मेदार हो, क्योंकि तुमने सदा सोच्ग कि तुम सुखी होना चाहते हो, तो तुम कैसे जिम्मेदार हो सकते हो तुम्हारे दुख के लिए? तुम सदा आकांक्षा करते हो आनंदपूर्णता की, तो कैसे तुम क्रोध कर सकते हो अपने से ही? और इस कारण तुम जिम्मेदारी फेंकते जाते हो दूसरे पर ही । यदि तुम दूसरे पर ही जिम्मेदारी डालते जाते हो, तो याद रखना कि तुम सदा गुलाम बने रहोगे। क्योंकि कोई भी दूसरे को नहीं बदल सकता है। कैसे तुम बदल सकते हो दूसरे को? क्या कभी किसी ने दूसरे को बदला? दुनिया की सबसे अधूरी इच्छाओं में से एक इच्छा है दूसरे को बदलने की। किसी ने ऐसा कभी किया नहीं। यह बात असंभव होती है। क्योंकि दूसरा अस्तित्व रखता है उसके अपने ठीक ढंग से तुम बदल नहीं सकते उसे तुम जिम्मेदारी डालते जाते हो दूसरे पर, लेकिन तुम दूसरे को बदल नहीं सकते। और क्योंकि तुम दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हो, तो तुम कभी न जान पाओगे कि बुनियादी जिम्मेदारी तुम्हारी होती है। बुनियादी परिवर्तन की जरूरत होती है तुम्हारे भीतर ।
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इसी तरह तो तुम फंसते हो यदि तुम सोचने लगो कि तुम जिम्मेदार हो तुम्हारे सारे कार्यों के लिए, तुम्हारे सभी भावों के लिए तो शुरू में एक उदासी छा जाएगी। लेकिन यदि तुम गुजर सकी उस उदासी में से, तो जल्दी ही तुम हल्का अनुभव करोगे, क्योंकि अब तुम मुक्त हो जाते हो दूसरों से, अब तुम काम कर सकते हो अपने से तुम मुक्त हो सकते हो चाहे सारा संसार दुखी हो और अमुक्त हो उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता। अन्यथा किसी बुद्ध की संभावना कैसे बनती? और कैसे कोई पतंजलि संभव होते? कैसे मैं संभव होता? सारा संसार वैसा ही है। वह एकदम वैसा ही है जैसा तुम्हारे लिए है, लेकिन कृष्ण तो नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं; वे मुक्त हैं और पहली मुक्ति है दूसरे पर जिम्मेदारी डालने की बात समाप्त करना। पहली मुक्ति है यह जानना कि तुम जिम्मेदार हो। तो बहुत सारी चीजें तुरंत संभव हो जाती हैं।
कर्म का पूरा सिद्धांत यही है कि तुम जिम्मेदार हो, जो कुछ भी तुमने बोया, तुम वही काट रहे हो । शायद तुम कार्य – कारण के संबंध को न समझ पाओ, लेकिन यदि कार्य है मौजूद, तो कारण जरूर कहीं होगा ही ।
यही है प्रति- प्रसव की सारी विधि : कैसे परिणाम से कारण की ओर सरकें, कैसे पीछे की ओर जाएं और कारण को ढूंढ लें, जहां से कि वह आया होता है। जो कुछ भी घटता है तुमको - तुम उदास अनुभव करते हो, तो बस मूंद लेना आंखें और देखते रहना तुम्हारी उदासी को। जहां वह ले जाए उसके पीछे जाना, उसमें और गहरे जाना। जल्दी ही तुम कारण तक पहुंच जाओगे। शायद तुम्हें लंबी यात्रा करनी पड़ेगी, क्योंकि यह सारा जीवन जुड़ा होता है; और न ही केवल यह जीवन, लेकिन और दूसरे